* पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी किशोर शिंदे ने स्कूलों की जानकारी छुपाने के लिए आरटीआई के नियमों को भी रख दिया था ताक पर
* शहर के कुछ स्कूलों की मान्यता, प्रबंध समिति, छात्र-शिक्षक रेसो सहित मांगी गई कई जानकारी शिक्षा कार्यालय ने गलत प्रेषित की
पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी किशोर शिंदे पर आरटीआई में गलत जानकारी देने के भी आरोप लग रहे हैं। शिकायतकर्ताओं ने कलेक्टर को लिखित शिकायत कर कहा है कि किशोर शिंदे के कार्यकाल के समय में हुई सभी प्रक्रियाओं की जांच की जाए। शिकायतकर्ताओं से बचने के लिए शिक्षा अधिकारी ने गोलमाल जवाब दिए थे। आईनेक्स्ट के पास आरटीआई की कॉपी मौजूद है, जिसमें स्पष्ट है कि प्राइवेट सीबीएसई स्कूलों का बचाव किया गया।
गजेन्द्र विश्वकर्मा. इंदौर
मोबाइल- 9826022779
शिक्षा विभाग में किस स्तर का भ्रष्टाचार हो रहा है, इसका अंदाजा उन राइट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) से लगाया जा सकता है, जिसमें स्कूलों की जानकारी देने के बजाए विभाग ने उन्हें बचाने की कोशिश की। लोक सेवा ग्यारंटी के तहत आरटीआई का जवाब 7 दिन में मिल जाना चाहिए, लेकिन विभाग ने 20 दिन में भी जवाब नहीं दिया। जिला पंचायत में शिकायत करने पर जिला शिक्षा अधिकारी ने जवाब दिए, लेकिन आरटीआई के सभी जवाबों का गोलमाल जवाब दिया गया।
विभाग को नहीं पता कितनों को मान्यता
आरटीआई के शिक्षा के अधिकार के तहत शहर के स्कूलों की मान्यता की जानकारी पूछी गई, लेकिन इसमें शिक्षा विभाग ने जो जवाब दिया वह हास्यास्पद है। मान्यता की जानकारी देने के बजाए जिला शिक्षा विभाग ने कह दिया कि स्कूल सीबीएसई प्राप्त हैं, इसलिए वे शिक्षा के अधिकार की जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। शिक्षा के अधिकार की परमिशन शिक्षा विभाग ही देता है और इसकी जानकारी अधिकारियों के पास होती है, फिर भी झूठी जानकारी आरटीआई में प्रेषित की गई।
प्राइवेट स्कूलों की प्रबंधक कमेटियों में एक भी सरकारी प्रतिनिधि नहीं
इंदौर के करीब 110 स्कूलों की प्रबंधक कमेटियों में अनिवार्य रूप से एक-एक शासकीय अधिकारी भी होता है। इनकी जानकारी मांगने पर विभाग ने गोलमाल जवाब दिया। शासकीय अधिकारियों की जानकारी देने के बजाए शिक्षा विभाग ने सीबीएसई मान्यता की बात कर जानकारी देने से मना कर दिया।
पुस्तक विक्रेताओं को लेकर भी गड़बड़ी
जून-जुलाई में जब इंदौर के स्कूलों में किताबों और ड्रेसेस को लेकर कलेक्टर सख्त निर्देश दे रहे थे, उस समय भी जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी लापरवाही करते रहे। दरअसल स्कूलों को कॉपी-किताबों और डे्रसेस के तीन विक्रेताओं के नाम जिला शिक्षा अधिकारी को भेजने होते हैं। इन विक्रेताओं के माध्यम से पैरेंट्स बच्चे का सामान खरीदते हैं। कई स्कूलों से 2013 से 2015 के बीच विक्रेताओं की जानकारी ही नहीं मांगी गई। इस मामले में लापरवाही करने पर आर्थिक दंड का प्रावधान है, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने किसी भी स्कूल पर कार्रवाई नहीं की।
गलत जानकारी देने में भी माहिर
सूचना के अधिकार में इंदौर के स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात की जानकारी जिला शिक्षा कार्यालय से मांगी गई। इस सवाल का जो जवाब शिकायतकर्ताओं को दिया गया, वह गलत निकला। दरअसल सीबीएसई स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात अलग होता है और एमपी बोर्ड के स्कूलों में अलग। पूर्व जिला शिक्षा अधिकारीने सीबीएसई स्कूलों के अनुपात की जगह एमपी बोर्ड की जानकारी आरटीआई में दी।
प्रशासन के तीनों विभागों में समन्वय नहीं
जिला शिक्षा कार्यालय, जिला पंचायत और कलेक्टोरेट के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए, लेकिन सीबीएसई स्कूलों के मामले में अधिकारियों में समन्वय नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जनसुनवाई में कलेक्टर को की गई स्कूलों की शिकायत एक महीने तक जिला पंचायत और जिला शिक्षा कार्यालय के बीच ही घूमती रही। दोबारा जब कलेक्टर को शिकायत पर ध्यान देने के लिए कहा गया तो शिकायत पत्रों को ढूंढा गया।
इस कारण बदनाम हुआ शिक्षा विभाग
* जिला शिक्षा अधिकारी किशोर शिंदे के खिलाफ जनसुनवाई में कई शिकायतें आ चुकी हैं।
* कलेक्टर और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की बात भी नहीं मान रहे थे शिक्षा अधिकारी।
* कुछ प्राइवेट सीबीएसई स्कूलों से साठगांठ के भी मिले हैं सबूत।
* आमजन द्वारा भेजी गई शिकायतों पर न कभी कार्रवाई होती है और न ही आरटीआई के जवाब दिए जाते हैं।
कलेक्टर को की पूरे मामले की शिकायत
जिला शिक्षा अधिकारी से सीबीएसई स्कूलों की मान्यता और अन्य तरह की जानकारी मांगी गई थी, लेकिन उन्होंने जानकारी देने में पहले तो आनाकानी की। कलेक्टर और जिला पंचायत में शिकायत करने के बाद आरटीआई के जवाब मिले, लेकिन सभी प्रश्नों के जवाब गलत दिए गए। कलेक्टर को पूरे मामले में शिकायत कर दी है।
-चरणदास पाठक, शिकायतकर्ता व सामाजिक कार्यकर्ता