खुशहाली का संदेशा लेकर भूमध्य सागर से चल पड़ी है पवन- कुमार मुकेश

खेतों में बिजाई की गई विभिन्न फसलों के लिए कम तापमान और बारिश का इंतजार कर रहे किसानों की चिंताओं को अब भूमध्य सागर से उठकर ईरान और इराक से होते हुए आने वाली हवाएं कम कर देंगी। सबकुछ ठीक रहा तो 4 जनवरी से हल्की बूंदाबांदी की संभावना है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार भूमध्य सागर से उठने वाली हवाओं के बाद अब पश्चिमी विक्षोभ बन गया है। यह 48 से 72 घंटों के बाद उत्तरी भारत में प्रवेश कर जाएगा। इस समय यह ईरान, इराक, अफगानिस्तान से गुजर रहा है। इससे अंबाला सहित कुछ क्षेत्रों में बारिश की संभावना है।

अभी क्या करें किसान
वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि गेहूं के फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। तापमान में गिरावट की संभावना के मद्देनजर सरसों की फसल की निराई गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें। बरसीम व हरे चारे की फसलों में हल्की सिंचाई करें। सर्द रातों के मद्देनजर पशुओं को पशुशाला में बांधे और पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य एवं दूध उत्पादन के लिए 50 ग्राम नमक और 50 से 100 ग्राम खनिज मिश्रण प्रति पशु अवश्य दें तथा हरा चारा और हरा चारा एवं बरसीम भी खिलाएं।

दिसंबर से फरवरी में सबसे ज्याद पश्चिमी विक्षोभ
पश्चिमी विक्षोभ दिसंबर से फरवरी के बीच प्रतिमाह तीन से चार की संख्या में बनते हैं। नवंबर, मार्च, अप्रैल में यह संख्या दो से तीन होती है। मई व जून में भी कभी-कभी बनता है। बाद में दक्षिणी पश्चिमी मानसून से ही ज्यादा बारिश होती है। 15 सितंबर के बाद यह विक्षोभ चला जाता है। इस बार जितने भी पश्चिमी विक्षोभ बने वे कमजोर थे लेकिन अब उम्मीद जगी है।

पहाड़ों में भी बिछेगी सफेद चादर
भूमध्य सागर की ओर से आ रही हवाओं पर अगर ब्रेक नहीं लगा तो इनका असर पहाड़ों पर भी होगा। उत्तर भारत के कुछ मैदानी इलाकों में जहां बारिश की संभावना बनी है, वहीं पहाड़ों पर बर्फबारी भी होने की संभावना है।
भूमध्य सागर में होने वाला वाष्पीकरण जब कम दबाव के साथ ऊपर उठता है तो इस प्रक्रिया को पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं। यह ईरान, इराक से होता हुआ भारत में आता है और बिहार में खत्म हो जाता है। इसे सर्दियों का मानसून कहना गलत न होगा।
डॉ राज सिंह, अध्यक्ष-कृषि मौसम विज्ञान विभाग, हकृवि

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