इसे हालात और व्यवस्था की विडंबना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि, 13 साल तक चले एक मुकदमे के बाद फैसला सुनाया गया कि मामले के आरोपी बेकसूर हैं। इनमें से दो आरोपियों की बदनामी के दाग के साथ ही मौत हो गई। जो चार आरोपी बरी कि ए गए उनका भी आर्थिक और सामाजिक नुकसान हुआ।
इन लोगों पर जान से मारने की कोशिश और दहेज के लिए उत्पीड़न करने का आरोप था। बरी किए गए आरोपियों का घर बार तक बिक गया। अब यह लोग सुप्रीम कोर्ट में क्षतिपूर्ति का दावा दायर करने की तैयारी कर रहे हैं।
बरी किए गए लोगों की पैरोकारी करने वाले अधिवक्ता राम कृष्ण तिवारी कहते हैं कि सन् 2000 में अलीगढ़ की एक युवती की शादी मथुरा में हुई थी। सन् 2002 में विवाद हुआ और ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ जान से मारने का प्रयास और दहेज के लिए उत्पीड़न का मुकदमा मडराक थाने में दर्ज हुआ।
मुकदमे में ऐसे लोग भी नामजद थे जो अपने जीवन में कभी थाने भी नहीं गए थे। मुकदमे के आधार पर आरोपियों की गिरफ्तारी भी हुई। इस मुकदमे की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत में आई और हाल ही में फैसला आया। इसके मुताबिक आरोपियों को बरी किया गया। जिन दो लोगों की मौत हुई है वह अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित लोग थे और मुकदमे के बाद से ही बेहद आहत थे।
अन्य आरोपियों को भी बहुत आर्थिक हानि हुई। जब अदालत ने उन्हें बरी किया तो सभी लोग अदालत में रोने लगे और कहा कि जज साहब जो लोग मर गए हैं उन्हें कैसे पता चलेगा कि वह बेगुनाह थे? साथ ही इस मुकदमे ने हमारा सब कुछ खत्म कर दिया। अब क्या होगा? अदालत ने उन्हें क्षति पूर्ति का दावा दायर करने की सलाह दी है। इसके बाद आरोपों से मुक्त किया गया पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट में क्षतिपूर्ति का दावा दायर करने की विधिक तैयारी कर रहा है।