भारत के लिए नया साल अच्छी खबर लेकर आया है कि देशभर में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर सौ करोड़ तक जा पहुंची है। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश के लिए निश्चित रूप से यह अच्छा संकेत है कि मोबाइल फोन की बिक्री के मामले में उसने कई देशों को पीछे छोड़ दिया है। इस मामले में वह सिर्फ चीन से ही पीछे है जहां दुनियाभर का सबसे बड़ा मोबाइल बाजार है। अगर जारी आंकड़ों पर यकीन करें तो गत वर्ष अकेले अक्तूबर माह में ही 70 लाख नये कनेक्शन उपभोक्ताओं को जारी किए गए। जो इस बात को तसदीक करते हैं कि भारत टेक्नोलॉजी के प्रयोग को लेकर कितना आगे है। किसी भी विकासशील देश के चेहरे की पहचान इस बात से भी की जाती है कि वहां के लोग टेक्नोलॉजी का कितना उपयोग कर रहे हैं। पिछले डेढ़ दशक से मोबाइल समाज में संवादहीनता की जड़ता को तोड़ने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। इस मोबाइल के उपयोग ने हमारे आधे से ज्यादा काम आसान कर दिए हैं। दफ्तरों में तरह-तरह के बिल जमा कराने के लिए लगती लंबी लाइनों से छुट्टी दिला दी। पैनिक बटन जैसी एप सुविधाओं ने महिलाओं को सुरक्षा की गारंटी दी है, बच्चे इसी मोबाइल के कारण अब घरों में अकेले महसूस नहीं करते क्योंकि उनके हाथ संवाद का वह शस्त्र है जिसके कारण विपरीत हालातों में भी वे अपनी हिफाजत कर सकते हैं।
लब्बोलुआब यह है कि मोबाइल हर दुख-सुख में हमारी जरूरत बनकर उभरा है। इसकी बढ़ती मांग के चलते ही दूरसंचार आपरेटरों ने अपनी दरें सस्ती कर दी हैं जो दूसरे देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा कम हैं। सस्ती दरों के कारण ही अिधकतर लोगों के पास एक से ज्यादा कनेक्शन हैं। न केवल मोबाइल बल्कि स्मार्टफोन की खरीद के मामले में भी भारत शेष देशों से पीछे नहीं है। ऐसा अनुमान है कि सस्ती दरों के कारण ही उपभोक्ताओं की संख्या इस साल 32.7 करोड़ होने वाली है जो कि पिछले साल 25 करोड़ थी। मगर सदुपयोग के साथ-साथ इसके दुरुपयोग के खतरे बराबर बने हुए हैं। फोन पर धमकी, धोखाधड़ी के केस, ठगी के मामले, उलटे-सीधे कॉल आम शिकायतें हैं, जिन पर रोक लगानी जरूरी है। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए सरकारी स्तर पर पुख्ता प्रयासों की दरकार हमेशा बनी रहेगी।
(दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय)