आने वाला साल महिलाओं के लिए अच्छी खबर लेकर आएगा। उनका मातृत्व अवकाश 26 हफ्ते तक बढ़ने वाला है। पहले यह मात्र 12 हफ्ते का था। महिला एवं शिशु विकास मंत्रालय की मानें तो इस फैसले से प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत सभी कामकाजी महिलाएं लाभान्वित होंगी, भले ही वह संगठित हो या असंगठित। श्रम मंत्रालय की ओर से इस आशय के फैसले को हरी झंडी मिल चुकी है। हालांकि मंत्री मेनका गांधी साढ़े छह माह की अवधि को बढ़ाकर आठ माह तक करने का आग्रह कर चुकी हैं। अगर श्रम मंत्रालय इस आशय के प्रस्ताव पर अपनी अक्षरश: मुहर लगाता है तो इससे न केवल कामकाजी महिलाओं को जरूरी आराम मिलेगा बल्कि नन्हे शिशु को मां का सान्निध्य भी प्राप्त होगा। कामकाजी मां की अनुपस्थिति में अकसर शिशु कुपोषण और डायरिया जैसी बीमारियों का शिकार हो जाता है जिससे शिशु मृत्यु दर नियंत्रण में नहीं आ पा रही। सरकार के इस फैसले से जच्चा-बच्चा दोनों सेहतमंद होंगे।
प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत महिलाओं का इस सरकारी फैसले से लाभान्वित होना इसीलिए भी जरूरी था क्योंकि इन संस्थानों में एक तो काम के घंटे ज्यादा होते हैं, दूसरा महिलाओं को नाइट ड्यूटी भी करनी पड़ती है। ऐसे हालात में नवजात शिशु को कई-कई घंटे मां के दूध से वंचित रहना पड़ता है। नतीजतन उसकी सेहत प्रभावित होती है। कई असंगठित संस्थानों में तो स्थिति और भी बदतर है। वहां स्वास्थ्य सेवाओं के साथ शिशुओं के क्रैच जैसी सुविधाओं की कमी खलती है। ज्यादा दिन अवकाश लेने पर निजी क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ता था या फिर मालिक वेतन में कटौती कर देते थे। अब न सिर्फ अवकाशावधि वाला वेतन मिलेगा और नौकरी बनी रहेगी, बल्कि प्रसूति लाभ अधिनियम 1961 के संशोधन के बाद उन्हें वे सारे लाभ भी मिलेंगे जो सरकारी दफ्तरों में कार्यरत महिलाओं को प्राप्त होते हैं। पर्याप्त प्रसूति अवकाश न मिलने पर मां का ध्यान बच्चे की परवरिश में ही लगा रहता था जिससे दफ्तरों में कामकाज भी प्रभावित होता था। अब सरकार के इस फैसले से दफ्तरों में काम की गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही, जच्चा-बच्चा भी खुश रहेंगे।
(संपादकीय- ट्रिब्यून)