लकड़ी बेचने के लिए फॉरेस्ट डिपो का उपयोग कर सकेंगे किसान

भोपाल। मप्र सरकार "पेड़ों की खेती" को अभियान के तौर पर शुरू करने की तैयारी में है। इसके लिए बकायदा नीति तैयार की जा रही है। इसमें शहरी व ग्रामीण लोगों को वानिकी से जुड़ने पर कई सुविधाएं मिलेंगी। वन विभाग के डिपो से ग्रामीण अपनी लकड़ी बेच सकेंगे और विभाग इनके लिए बाजार भी उपलब्‍ध कराने की व्यवस्था करेगा। सरकार का जोर बांसों की खेती को बढ़ावा देने पर भी है।

सूत्रों के मुताबिक कृषि वानिकी नीति का एक उद्देश्य किसानों को मौसम की प्रतिकूलता से होने वाले नुकसान से बचाने का भी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा है कि किसानों को आय का वैकल्पिक साधन मिले। नीति के तहत लोगों को निजी भूमि पर पेड़ लगाने व इसकी लकड़ी बेचकर आय करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। नीति का प्रारूप तैयार हो चुका है। वन विभाग अगले माह मुख्यमंत्री के समक्ष इसका प्रस्तुतिकरण करेगा। इसमें कई संगठनों की राय भी ली गई है। ग्रामीण विभागीय डिपो का उपयोग लकड़ी बेचने के लिए कर सकेंगे। वन विभाग की सोच है कि नियमों को सरल करने व सुविध्ााएं बढ़ाने से आमजन व निजी संस्थाएं पेड़ लगाने में रुचि लेंगी व जंगलों पर आधारित उद्योगों का विस्तार होगा। लकड़ी के लिए लोगों व उद्योगों की जंगल पर निर्भरता खत्म होगी। विभाग की विकास शाखा के एपीसीसीएम वाय.सत्यम के मुताबिक प्रस्तावित नीति का उद्देश्य जंगलों पर लोगों की निर्भरता खत्म करना है। जल्द ही इसका अंतिम स्वरूप तय होगा।

अनुदान भी: नीति में बांस व अन्य पेड़ों के रोपण के लिए तीन वर्ष तक अनुदान का प्रावधान होगा। इमारती व जलाऊ लकड़ी की मांग और उपलब्‍धता के बीच का अंतर दूर करने वृक्षारोपण पर जोर होगा। खेतों की मेढ़ों व निजी-पड़त भूमि पर वृक्ष लगाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाएगा। किसानों को निजी नर्सरी स्थापित करने के लिए प्रशिक्षण व अन्य सुविधा मिलेंगी।

टीपी से बाहर होगा पीपल

सूत्र बताते हैं कि वन विभाग 53 प्रजातियों के पेड़ों को टीपी से मुक्त करने के निर्णय में संशोधन करके पीपल को इस सूची से बाहर करने का मानस बना चुका है। एक उच्च पदस्थ अफसर ने स्वीकार किया कि लोगों को यदि आपत्ति है तो पीपल को टीपी के दायरे में लिया जा सकता है, लेकिन यह सरकार के रुख पर निर्भर होगा। ज्ञात हो पीपल, नीम, बरगद को टीपी मुक्त करने का चौतरफा विरोध हो चुका है। मुख्यमंत्री भी इस पर पुनर्विचार की बात कह चुके हैं।

 

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