इस किशोर ने निर्भया के साथ सबसे अधिक निर्ममता की थी। इसलिए उसे शायद ही किसी की सहानुभूति इसलिए मिलती कि वह नाबालिग था। निर्भया के माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इसीलिए निर्भया के साथ हुए हादसे के बाद सरकारों ने उसके परिवार पर सहायता की बरसात कर दी।
दूसरी ओर हाल ही में कुछ अखबारों ने इस अपराधी किशोर के गांव जाकर उसकी मां से बात की थी। मां की हालत इतनी बुरी है, इस कदर गरीबी है कि घर का खर्च चलना मुश्किल है। इस किशोर के सुधारगृह में जाने से परिवार की आय का सहारा भी छिन गया था। बड़ी दो बहनें मेहनत मजदूरी करके घर चला रही थीं। माता-पिता दोनों को बीमारियां थीं और सामाजिक बहिष्कार भी था। उनके बारे में पढ़कर यह अफसोस होता था कि जो लड़का इतना गरीब था और जिसकी आय से परिवार सिर्फ सूखी रोटी ही खा पाता था, उसने ऐसा क्यों किया होगा? या कि हमारे अवचेतन में यह बात बैठी रहती है कि लड़की जैसे ही दिखी, उसके प्रति अपराध करने के लिए मन ललचाया। यानी लड़कियां होती ही इसलिए हैं कि उनके प्रति आराम से अपराध किए जा सकें और बच निकला जाए। आखिर इस माइंडसेट में बदलाव कैसे होगा कि रात के समय अकेली खड़ी लड़की के प्रति कोई भी गंभीर अपराध करने के बाद इस तरह से बचने का प्रयास किया जाए कि इतनी देर रात को वह घर से बाहर थी ही क्यों? क्या हर सड़क चलता लड़की के अकेली बाहर निकलने के अपराध के लिए उसके प्रति जघन्यतम अपराध करने की सोचे?
निर्भया आंदोलन के समय ऐसे अपराधियों को कठोर से कठोर सजा देने की बात कही गई थी। इस्लामिक देशों में जिस तरह अपराधियों को चौराहे पर लटका दिया जाता है, उसी तरह लटकाने की बात भी की जाने लगी थी। इसीलिएजस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की सिफारिश पर नया दुष्कर्मरोधी कानून बनाया गया था। लेकिन यह भी देखने में आया कि कठोर कानून ने लोगों के मन में डर तो नहीं पैदा किया, दुष्कर्म की घटनाओं में बढ़ोतरी ही हुई। नन्हीं बच्चियों को भी दरिंदों ने नहीं बख्शा।
कानून चाहे जितना कठोर बना दें, लोगों की यह सोच कैसे बदलेंगे कि मौका मिले तो अपराध कर लो, फिर बच निकलो? अगर पकड़े गए तो तबकी तब देखी जाएगी। इसी तरह यह तो ठीक है कि किशोर न्याय अधिनियम में बदलाव करने से अब कोई भी किशोर गंभीर से गंभीर अपराध करके सिर्फ इसलिए नहीं छूट पाएगा कि उसकी उम्र कम है। मगर कानून में बदलाव क्या किशोरों में इस बात का डर भी पैदा करेगा कि अगर उन्होंने अपराध किया और पकड़े गए तो कम उम्र होने का बहाना अब नहीं चलेगा?
हालांकि पिछले दिनों ऐसी न जाने कितनी अपराध कथाएं सामने आई हैं, जिनमें नौ से लेकर ग्यारह-बारह साल तक के बच्चे गंभीर अपराध में पकड़े गए हैं। इन सबकी उम्र तो सोलह साल से कम थी। तब इनसे कानून कैसे निपटेगा? इन्हें किस तरह दंडित करेगा? क्या यह उम्मीद की जाएगी कि सुधारगृह में जाने के बाद ये बच्चे अपने आप सुधर जाएंगे? सब जानते हैं कि सुधारगृह में जाकर शायद ही कोई सुधरता है, बल्कि सुधारगृह और जेलें कई बार अपराध सिखाने की सबसे
बड़ी जगहें साबित होती हैं। जेल जाने का जो डर मन में बैठा होता है, वह निकल जाता है। कई बार लोग जेल से निकलते वक्त विजयी मुद्रा बनाते दिखते हैं। बड़े-बड़े नेता भी जेल से निकलते वक्त ऐसा करते दिखते हैं। जब बड़े लोग ऐसी विजयी मुद्रा अपनाते हैं, तो कोई किशोर या बच्चा वहां से निकलते हुए क्यों शरमाएगा? क्या पता वह वहां से कितने तरीके के अपराध सीखकर आएगा और बाहर आकर उन्हें अंजाम देगा!
महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किशोर न्याय अधिनियम में बदलाव की जोर-शोर से वकालत की थी। मीडिया में भी यह बहस खूब छाई रही। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी इस किशोर अपराधी के खिलाफ मुहिम चलाई। समाजवादी पार्टी की नेता और मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भी लखनऊ में विरोध प्रदर्शन किया। तमाम संगठन तो इस एक्ट में संशोधन की मांग कर ही रहे थे। इन सभी को इस बात से खुश होना चाहिए कि किशोर न्याय अधिनियम में बदलाव हो चुका है। अब जरूरत इस बात की है कि यह कोशिश की जाए कि किशोर अपराध की दुनिया की तरफ प्रवृत्त ही न हों, जिससे कि उन्हें सुधारगृह में जाना ही न पड़े।