27 फीसदी प्रोटीन वाले तिवरा पर मिलावटखोरी का डंडा

गौतम चौबे/रायपुर। गरीबों के प्रोटीन तिवरा (लाखड़ी) में हानिकारक तत्व नहीं होने के बावजूद उस पर खाद्य सुरक्षा का डंडा चल रहा है। आज तक किसी भी वैज्ञानिक ने तिवरा के हानिकारक होने की पुष्टि नहीं की है। नागपुर के समाजसेवी शांति लाल कोठारी ने तिवरा को लेकर उच्च अदालत तक केस लड़ा है और इसके हानिकारक होने की पुष्टि करने वाले को एक लाख रुपए इनाम देने की घोषणा की है। लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला। इसके बावजूद तिवरा को मिलावटखोरी की श्रेणी में रखा गया है। खाद्य एवं औषधि सुरक्षा विभाग मिलावट के नाम पर जब्ती की कार्यवाही कर रहा है और इसका फायदा व्यापारी उठा रहे हैं। तिवरा में सबसे अधिक प्रोटीन 27 प्रतिशत होने के बावजूद आज बाजार में इसकी कीमत केवल 10-20 रुपए किलो है। इसलिए किसान हतोत्साहित हैं और रकबा घटता जा रहा है।

आमतौर पर गेहूं में मक्का या बाजरा, बेसन में तिवरा और इडली के लिए चावल आटा में उड़द मिलाया जाता है। खाने-पीने की चीजों में इस तरह की कई चीजें मिलाई जाती हैं, लेकिन खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग केवल तिवरा की मिलावट पर ही कार्यवाही कर रहा है। छत्तीसग़ढ़ में शुरू से भजिया को कुरकुरा करने के लिए बेसन में तिवरा आटा मिलाया जाता है। जानकारों का कहना है कि यदि तिवरा में हानिकारक तत्व होते तो लोग ऐसी भजिया खाना ही छोड़ देते। दूसरी ओर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने तिवरा की नई किस्में महातिवरा और प्रतीक विकसित की है, जिसमें टॉक्सिन की मात्रा 0.07 से 0.078 प्रतिशत है। यह मात्रा नगण्य है जो हानिकारक नहीं है। इसके बावजूद कृषि विभाग इसके प्रचार-प्रसार के लिए समुचित प्रयास नहीं कर रहा है।

तिवरा को लेकर केवल भ्रांति

जनमानस में केवल भ्रांति है कि तिवरा के सेवन से पैरालिसिस और गठिया वात होता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। खुद बायोवर्सिटी इंटरनेशनल के डायरेक्टर पीएन माथुर ने मार्च 2014 में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में महातिवरा की तारीफ करते हुए कहा था कि यह हानिकारक नहीं है, यदि इसका सेवन रोज न किया जाए। यदि इसे पानी में भिगोकर रातभर रखा जाए तो इसके टॉक्सिन अलग हो जाते हैं और इसका सेवन फायदेमंद है

छत्तीसगढ़ में आज तक एक भी प्रकरण नहीं

छत्तीसगढ़ में तिवरा दाल खाने से पैरालिसिस होने का एक भी प्रकरण सामने नहीं आया है। यहां गांवों में पकाने की पारंपरिक विधि से टॉक्सिन समाप्त हो जाते हैं। इसलिए यहां कोई प्रकरण नहीं आया है।

– डॉ.संकेत ठाकुर, कृषि वैज्ञानिक

सर्वाधिक 27 प्रतिशत प्रोटीन

रिसर्च के मुताबिक दालों में सबसे ज्यादा प्रोटीन तिवरा में 27 प्रतिशत होता है। इसके बाद सोयाबीन में 20 प्रतिशत। तिवरा को बंद करने के कारण भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की कमी होने लगी है और लोग कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।

लाखड़ी की खासियत

0 भूसे व चुनी से गाय ज्यादा दूध देती है।

0 बिना खाद और पानी की फसल

0 अतिरिक्त पोषक तत्व की आवश्यकता नहीं

0 राज्य में एकबड़ा वर्ग इस पर आश्रित

0 केवल कनाडा और भारत में ही होता है तिवरा

0 किसानों की पूरक आय का साधन

अकाल और महामारी के समय लोगों ने लगातार तिवरा का सेवन किया और इसके उपयोग करने की विधि को नहीं अपनाया, इसलिए धीरे-धीरे गठिया वात के शिकार हो गए। लेकिन अब तिवरा से पैरालिसिस या वात का कोई प्रकरण नहीं आ रहा है। इसे जरूरत से ज्यादा बदनाम किया जा रहा है।

– डॉ.संजय शर्मा, न्यूरोलॉजिस्ट, रामकृष्ण केयर

विभाग मिलावट पर कार्यवाही करता है। किसी भी चीज में मिलावट करके बेचना गलत है। बेसन में तिवरा आटा मिलाकर बेचा जाता है। इसलिए कार्यवाही की जाती है। लेकिन तिवरा या उसके दाल के उपयोग पर कार्यवाही नहीं की जाती है।

– पीवी नरसिंहराव, नियंत्रक, खाद्य एवं औषधि प्रशासन

 

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