दिल्ली की तरह ही चीन की राजधानी बीजिंग भी प्रदूषण से परेशान है। चीन सरकार को पहली बार वायु गुणवत्ता पर रेड अलर्ट जारी करना पड़ा। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद केजरीवाल सरकार ने निजी कारों के लिए सम-विषम फॉर्मूला अपनाने की योजना तैयार की है। शायद यह पहला मौका है, जब भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को इतनी गंभीरता से लिया गया है। लेकिन लगभग दो करोड़ की आबादी और 60 लाख से अधिक कारों वाले बीजिंग में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए विभिन्न तरह के उपाय बहुत पहले शुरू हो गए थे।
प्रदूषण की वजह से खराब होती चीन और बीजिंग की छवि को सुधारने का पहला बड़ा प्रयास 2008 के बीजिंग ओलंपिक से पहले हुआ। तब कारों को सम-विषम नंबरों के आधार पर चलाने का नियम लागू किया गया। इसके साथ ही प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को बीजिंग से सटे हबेई प्रांत में स्थानांतरित कर दिया गया। इससे प्रदूषण के स्तर में कमी आई है, फिर भी ठंड के दिनों में प्रदूषण बीजिंग और आसपास के इलाकों को घेर लेता है।
समस्या की मुख्य वजह अब भी कोयले से चलने वाले पावर प्लांट और कारें हैं। सर्दियों में उत्तरी चीन में घरों में सेंट्रल हीटिंग चलती है, जिसका उत्पादन कोयले से चलने वाले प्लांट्स से होता है। हालांकि सरकार ने 2017 तक बीजिंग में वैकल्पिक उपाय कर इन्हें बंद करने की योजना बनाई है। कारखानों के लिए भी उत्सर्जन संबंधी नियम सख्त कर दिए गए हैं। वहीं सौर, पवन और अन्य अक्षय ऊर्जा में भारी निवेश किया जा रहा है। मगर तेज आर्थिक विकास का खामियाजा चीन को भुगतना पड़ रहा है। कोयले से चलने वाले सैकड़ों पावर प्लांट्स यहां अब भी हैं। चीन विद्युत उत्पादन के लिए 60 प्रतिशत से अधिक कोयले पर ही निर्भर है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बीजिंग में एयर क्वालिटी नापने के लिए कई जगहों पर उपकरण लगाए गए हैं। इनके जरिए लोगों को पार्टिकुलेट मैटर के खतरों की जानकारी हासिल होती है। प्रदूषण के वक्त मास्क पहनने के अलावा बाहर ज्यादा न घूमने की हिदायत दी जाती है। बीजिंग की सड़कों से नौ लाख से अधिक पुराने वाहनों को भी हटाया गया है। सरकार पुरानी कारों को छोड़कर नई कारें लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए दस अरब रुपए की सालाना सब्सिडी दी जा रही है। इसी महीने एक हजार वाहनों को 20 दिसंबर से प्रतिबंधित करने का एलान हो चुका है। बीजिंग म्यूनिसिपल एनवायरमेंट प्रोटेक्शन ब्यूरो के मुताबिक, जो कोई भी इस तरह के वाहन चलाते हुए पकड़ा जाएगा, उसे 100 युआन (एक हजार रुपए) का जुर्माना देना होगा।
बीजिंग में आमतौर पर सोमवार से शुक्रवार तक एक दिन निर्धारित नंबर वाली कारें चलाने की इजाजत नहीं होती। शनिवार और रविवार को कोई पाबंदी नहीं है। यह व्यवस्था 13 सप्ताह के लिए होती है, जिसके बाद इसमें बदलाव होता है। कुछ विशेष अवसरों पर या प्रदूषण बढ़ जाने की स्थिति में सम-विषम सिस्टम पूरे सप्ताह के लिए लागू कर दिया जाता है। इस दौरान लोगया तो बस व मेट्रो से आते-जाते हैं या फिर कार पूल आदि का सहारा लेते हैं। जनवरी, 2012 से बीजिंग में नई कार खरीदने के लिए भी नियम लागू हैं। हर महीने यहां महज 17,600 कारें ही लॉटरी सिस्टम से खरीदी जा सकती हैं। दोपहिया वाहनों में केवल बैटरी चालित बाइक और साइकिलें ही सड़कों पर चलती हैं। पेट्रोल वाली मोटरबाइक आदि पर भारी टैक्स लगाया गया है। शहर में जगह-जगह पर साइकिल स्टैंड हैं, जहां से छोटी दूरी तय करने के लिए किराए पर साइकिल ली जा सकती है।
निजी वाहनों पर सख्ती के बावजूद बीजिंग में एक जगह से दूसरी जगह जाने में कोई मुश्किल नहीं आती। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था सुलभ है। मेट्रो और बसों का तेजी से विस्तार किया गया है। 18 लाइनों वाली बीजिंग मेट्रो 527 किलोमीटर से अधिक लंबी रूट पर चलती है। वर्ष 2020 तक इसकी कुछ और नई लाइनें चालू करने की योजना है। वहीं लगभग 22,555 बसें बीजिंग पब्लिक ट्रांसपोर्ट और 1,348 बसें निजी ऑपरेटर द्वारा यहां संचालित हो रही हैं। प्रदूषण बढ़ने के कारण मेट्रो का एक ही किराया दो युआन यानी बीस रुपया रखा गया। बसों का किराया एक युआन से भी कम कर दिया गया था, हालांकि अब इसे बढ़ा दिया गया है।
इतने उपाय करने के बावजूद अक्तूबर के बाद ठंड के मौसम में प्रदूषण का स्तर बढ़ना यहां आम बात है। इस साल अक्तूबर में वायु की औसत गुणवत्ता 74 रही, जबकि नवंबर में यह 118 थी। दिसंबर में औसत स्तर 150 के आसपास रहता है। आठ से 10 दिसंबर तक एयर क्वालिटी का लेवल 300 से अधिक पहुंच गया था। लेकिन सरकार ने इससे पहले ही 53 घंटों के लिए रेड अलर्ट जारी कर दिया। इसके साथ ही हबेई प्रांत में कई कारखानों को आंशिक तौर पर बंद करने के निर्देश भी दिए गए। कर्मचारियों को जरूरी काम होने पर ही ऑफिस आने को कहा गया। बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्कूल भी तीन दिन तक बंद रहे। इससे प्रदूषण के स्तर में भारी कमी आ गई। आसमान पूरी तरह नीला हो गया।
बीजिंग में होने वाले किसी भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन या आयोजन के दौरान वाहनों और कारखानों पर कड़े नियम लगाए जाते हैं। पिछले साल हुए एपेक सम्मेलन के दौरान ऐसा ही किया गया था। स्कूलों में छुट्टियां कर दी गईं, जबकि तमाम सरकारी दफ्तर भी बंद रहे। इस वजह से वायु की गुणवत्ता बहुत अच्छी रही। जबकि इस साल सितंबर में द्वितीय विश्व युद्घ में जापान की हार की 70वीं बरसी पर भी यही किया गया।
इन प्रयासों से चीन की राजधानी में दिल्ली के मुकाबले प्रदूषण का स्तर बहुत कम है। सड़कों की स्थिति और शहर में स्वच्छता भी दिल्ली से कई गुना बेहतर है। सबसे बड़ी बात है कि बीजिंग प्रदूषण के खिलाफ जंग में ज्यादा गंभीर दिखता है। हालांकि चीन को एक फायदा यह भी है कि यहां एक पार्टी सिस्टम है। सरकार जो योजना बनाती है, वह हकीकत में लागू भी होती है। अगर लोगों को तमाम बीमारियों से बचाना हैऔरहालत सुधारनी है, तो दिल्ली को बीजिंग से कुछ तो सीखना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)