‘नईदुनिया’ के पास रिपोर्ट की प्रति मौजूद है। दरअसल एसएचआरसी ने एक एनालिसिस के लिए गांवों में कार्यरत गांव समितियां, जिन्हें ‘विलेज हेल्थ सेनीटेशन एंड न्यूट्रिशन कम्यूनिटिज’ (वीएचएसएनसी) भी कहा जाता है, के रजिस्टर जिसमें गांव में होने वाली मौतों से संबंधित तमाम जानकारियां दर्ज होती हैं, को कम्पाइल किया। गांवों में 365 दिन में कुल 74279 का डाटा रजिस्टर में था।
कम्पाइल डाटा पर एनालिसिस शुरू हुआ। इस दौरान जो आंकड़े सामने आए वे चौंकाने वाले थे। बुखार/मलेरिया से 0-28 दिन के 133 बच्चों की मौत हुई। 29 दिन से 11 महीने के बीच के आयुवर्ग के 243, 1 से 4 साल में 363, 5-14 साल के बीच 378, 15-49 साल आयुवर्ग के 1111, 50 से 59 साल के 375, 60 से 69 साल 524, 70 साल से अधिक आयुवर्ग के 836 लोगों की मौत हुई यानी कुल 3962 लोगों की जान गई।
हालांकि यहां यह भी बताना जरूरी है कि एसएचआरसी की तरफ से सिर्फ रजिस्टर बेस्ड एनालिसिस किया गया, न कि मौके पर जाकर परिजनों से मौत के कारणों की पूछताछ हुई, न ही मृतक की बीमारी से संबंधित किसी रिपोर्ट पर पड़ताल। ग्रामीण अंचलों में हुई 74279 मौत, भारत सरकार द्वारा की गई जनगणना 2011 के मुताबिक छत्तीसगढ़ में मृत्यु दर का 49 फीसदी है यानी की 51 फीसदी ग्रामीण की मौत वीएचएसएनसी के रजिस्टर में दर्ज नहीं हुई हैं। एसएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2012, 2013 की तुलना में 2014 में वीएचएसएनसी ने बेहतर काम किया है।
मलेरिया-बुखार से मरने वालों की संख्या सर्वाधिक-
74279 मौतों में सर्वाधिक मौते मलेरिया, बुखार से होना पाया गया है। जो कुल मौतों को 5 फीसदी है। इसके अलावा पीलिया से 1642 (2 फीसदी), कुपोषण से 1046 (1फीसदी), निमोनिया से 1199 (2 फीसदी), डायरिया से 949 (1 फीसदी), टीबी से 1795 (2 फीसदी), नवजात शिशु के मामलों में 3262 (4 फीसदी) रही है।
एसएचआरसी ने कैसे किया विश्लेषण-
एसएचआरसी ने वीएचएसएनसी के डेथ रजिस्टर से डाटा कंपाइल कर कम्प्यूटराइज्ड किया, ताकि आयु, जिला और कारण के आधार पर एनालिसिस किया जा सके। वीएचएसएनसी का डाटा भारत सरकार की तकनीकी गाइड लाइन की परिभाषा से अलग है, लेकिन एसएचआरसी की तरफ से कहा गया है कि यह प्रदेश में हो रही मौतों के कारणों का पता लगाने के लिए बहुत उपयोगी है।
गांव समितियों को रिपोर्ट रखना अनिवार्य-
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के निर्देशानुसार प्रत्येक गांव समिति को गांवों में होने वाली मौत का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है। इसका मकसद ग्रामीण स्वास्थ्य पर निगरानी रखना और उच्च स्तरों पर योजनाएं बनाना है। गांव समिति, जिनमें मितानिन होती हैं वे मृतक के घर जाकर पूछताछ करती हैं और मौत के लक्षणों केआधार पर एनएचएम द्वारा दिए गए फॉर्मेट को भरती है और फिर प्रॉपर चैनल यह रिपोर्ट उच्च स्तरों तक पहुंचती है। इन रिपोर्ट के जरिए डेथ ऑडिट भी होता है।
स्वास्थ्य संचालनालय का एसएचआरसी को पत्र-
‘नईदुनिया’ को विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस रिपोर्ट को लेकर स्वास्थ्य संचालनालय और एसएचआरसी आमने-सामने आ गए हैं। संचालनालय की तरफ से एसएचआरसी को पत्र लिखा गया है कि आखिर रिपोर्टिंग इतनी देरी से क्यों की गई? अगर हर महीने रिपोर्टिंग हो तो स्थिति में सुधार आएगा।
विश्लेषण गांवों की स्वास्थ्य समितियों द्वारा भेजे गए डाटाबेस से तैयार किया है। यह संकेत देता है कि किन चीजों में आगे जांच की जरूरत है। समुदाय तकनीक पर विश्वसनीयता का दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि यह हेल्थ सिस्टम के लिए एक उपयोगी विश्लेषण है। स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया है। – समीर गर्ग, सीनियर प्रोग्राम कॉर्डिनेटर, एचएसआरसी
एसएचआरसी की रिपोर्ट हमारे पास आई है, हम उस पर एनालिसिस भी करवा रहे हैं। सिर्फ बुखार से ही मौत नहीं हैं, दूसरे अन्य कारण भी हैं। जहां तक सवाल मलेरिया से मौत का है तो हम केंद्र सरकार की गाइड लाइन का पालन कर रहे हैं। – आर. प्रसन्ना, संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं