सूखे से बेहाल बुंदेलखंड- भारत डोगरा

उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ हो या झारखंड, ओडिशा हो या आंध्र प्रदेश-देश के एक बड़े भाग को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया है। ऐसे क्षेत्रों में रोजगार कार्यों के अभाव में लोगों का दुख-दर्द बढ़ रहा है। बांदा जिले में नरैनी प्रखंड के घसराऊट गांव के लोगों ने बताया कि खरीफ की फसल तबाह हो गई, फिर सूखे के कारण रबी की बुआई कम हुई। इसके बावजूद मनरेगा के अंतर्गत बहुत कम रोजगार मिला है।

खरीफ की फसल का हर्जाना अभी तक नहीं मिला है। आंगनवाड़ी कार्यक्रम ठीक से नहीं चल रहा। किसानों के घर में अपने खेत का अनाज नहीं है, अतः खाद्यान्न बाजार से खरीदने पड़ते हैं। दलहन की फसल नष्ट होने के बाद दालों की खपत न के बराबर है। पीने के लिए गांव से कुछ दूरी पर एक हैंडपंप है। कुछ लोग बागेन नदी से पीने के लिए पानी लेते हैं। वहीं पशु भी पानी पीते हैं।

गांव में मजदूरी न मिलने के कारण कर्ज बढ़ रहा है। किसानों को जमीन गिरवी रखनी पड़ी है। सियादुलारी ने बताया कि पहले एक विवाह के लिए बहुत कर्ज लिया, अब दूसरी बिटिया का विवाह कैसे करें? भूख और कुपोषण की समस्या के विकट होने के साथ-साथ कई अन्य तनाव भी बढ़ रहे हैं।

बिसंडा प्रखंड (जिला बांदा) में मन्नू लाल को आर्थिक मजबूरी के कारण रोजगार की तलाश में गांव से पलायन करना पड़ा। मजदूरी ठीक न मिलने पर उसे गांव लौटना पड़ा, तो यहां भी फसलों को तबाह पाया। बच्चों के विवाह की चिंता थी, कर्ज का बोझ पहले से था। एक दिन उसने आत्महत्या कर ली। तब कितने ही अधिकारी उसके घर पर पहुंचे और उन्होंने परिवार के सामने आश्वासनों की झड़ी लगा दी। पर अभी तक कोई आश्वासन पूरा नहीं हुआ और परिवार की स्थिति खराब है। दोनों बेटे मजदूरी के लिए भटक रहे हैं, मां किसी के खेत में मजदूरी करने गई थी और अकेली बेटी घर में सहमी हुई बैठी थी।

आसपास के लोगों ने बताया कि सूखे से धान की फसल को बहुत नुकसान पहुंचा है। आगे रबी की फसल भी बोरवेल के आसपास ही हो पाएगी। बर्बाद फसलों की क्षतिपूर्ति ठीक से नहीं होती। बटाईदारों को तो कुछ भी मुआवजा नहीं मिलता। गांव में भूख व कुपोषण की समस्या विकट है। ऐसे में लोग खतरनाक स्थितियों में भी कार्य करने को तैयार हो गए हैं। गांव के पास ही आतिशबाजी तैयार करते समय हाल में दो युवा जलकर मर गए। इनके परिवार को अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है।

महोबा जिले के थुरहट गांव (जैतपुर प्रखंड) में तीन फसलें तबाह होने के बावजूद मनरेगा में रोजगार नहीं मिल रहा। लोगों के मुताबिक, यदि एक 75 प्रतिशत पूरी हो चुकी जल योजना का शेष 25 प्रतिशत कार्य भी पूरा कर दिया जाता, तो एक साथ कई गांवों को सूखे से राहत मिल सकती थी। न तालाब में मछली पालन के लिए पानी बचा है, न खेती के लिए। इन दिनों यहां के लोग राजस्थान के ईंट-भट्टों में मजदूरी के लिए जा रहे हैं।

ऐसे में जरूरी है कि बड़े पैमाने पर मनरेगा कार्य वसूखा राहत कार्य आरंभ किए जाएं तथा क्षतिग्रस्त फसलों का उचित मुआवजा बटाईदारों सहित सभी किसानों को दिया जाए। पोषण कार्यों को सुधारना व कर्ज से राहत देना भी जरूरी है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सूखे के दौर में किसान अपनी जमीन से वंचित न हो।

इनक्लूसिव मीडिया-यूएनडीपी फैलोशिप के तहत लिखा गया लेख

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *