बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान में बनी सहमति

नई दिल्ली। भारतीय बासमती चावल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक नई पहचान मिली है। यह प्रतिष्ठा दिलाने में पाकिस्तान उसके साथ है। लंबे दाने के खुशबू वाले बासमती को जीआई टैग दिलाने में भारत के दावे का पाकिस्तान ने वैश्विक स्तर पर खुलकर समर्थन किया है। बासमती के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच एक अंतरिम समझौता भी है।

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि बासमती चावल का उत्पादन गंगा के मैदानी इलाकों में होता है। बासमती चावल के निर्यात से भारत को सालाना 29,000 करोड़ रुपये की आय होती है। यह पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब और भारत के 77 जिलों में उगाया जाता है।

भौगोलिक पहचान यानी जीआई टैग से तात्पर्य उन इलाकों को चिह्नित करने से है, जहां बासमती की परंपरागत तौर पर खेती होती रही है। यहां के चावल की खुशबू और चावल की लंबाई अपने आप में अनोखी तो होती ही है, चावल का स्वाद भी अनूठा होता है। इसका ट्रेडमार्क और पेटेंट किया जाता है।

चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) ने हाल में बासमती चावल से संबंधित सभी पक्षकारों की दलीलों की सुनवाई पूरी कर ली है। इसमें किसान, निर्यातक, बीजों की किस्म तैयार करने वाले कृषि वैज्ञानिक और पाकिस्तान के प्रतिनिधि प्रमुख हैं। बासमती चावल की जीआई और इससे जुड़ी अधिसूचना अगले सप्ताह तक जारी हो जाने की संभावना है।

बासमती के जीआई को लेकर जबर्दस्त विवाद चल रहा था। लेकिन इस संभावित फैसले से भारतीय बासमती चावल का दबदबा वैश्विक स्तर पर हो जाएगा। दरअसल, सिंधु-गंगा के मैदान (इंडो-गैंगेटिक प्लेन) में जो बासमती चावल पैदा होता है, उसकी खासियत विश्व के किसी और चावल के मुकाबले अलग होती है। उसे सरंक्षित करने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जद्दोजहद चल रही थी। इसमें पाकिस्तान भी बड़ा प्रतिस्पर्धी बन रहा था। लेकिन उसके नए रुख से भारतीय बासमती के पहचान की राह बहुत आसान हो गई है।

विश्व बाजार में बासमती के कुल निर्यात में भारत की अकेले हिस्सेदारी 85 और पाकिस्तान की 15 फीसद है। भारत व पाक को सबसे ज्यादा डर चीन जैसे चावल उत्पादक देशों से है। इसके मद्देनजर दोनों देश बासमती को संरक्षित करने को लेकर एकजुट हो गए। इसके चलते भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर समेत सात राज्यों के 77 जिले को किसानों को इसका लाभ मिलेगा।

31 दिसंबर, 2013 को जीआई रजिस्ट्री ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर पूछा था कि मध्य प्रदेश को भी परंपरागत बासमती उत्पादक राज्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसे लेकर कृषि व वाणिज्य मंत्रालय की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। उन्होंने राज्य सरकार के दावे को अनुचित करार दिया। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने इसके विरोध में जबर्दस्त दलीलें पेश करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश का दावा सही नहीं है।

 

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