इस रिपोर्ट के आधार पर शिक्षा गुणवत्ता अभियान एवं सर्व शिक्षा अभियान के अफसरों ने सभी जिले के कलेक्टर्स एवं जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र भेजकर चेताया है। पत्र में साफ कहा गया है कि स्कूल स्तर के अधिकारी संकुल समन्वयक, विकासखंड स्त्रोत समन्वयक, डाइट , बीईओ और डीईओ स्तर पर चुस्ती लाने की जरूरत है।
विज्ञान , गणित में नहीं करवा रहे रुचि
करीब अस्सी फीसदी स्कूलों में शिक्षक बच्चों के भीतर गणित और विज्ञान के लिए रुचि बनाने के लिए दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। 80 फीसदी स्कूलों के बच्चे विज्ञान के बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दे पाए हैं और न ही किसी प्रतियोगिता में ही हिस्सा ले पाए हैं। 78 प्रतिशत बच्चे भौगोलिक और विज्ञान की रूटीन घटनाओं को भी नहीं समझ पाते हैं। 74 फीसदी बच्चों को आपदा से बचने की जानकारी नहीं।
90 फीसदी नहीं लिख पाते बोले गए शब्द
बारह हजार स्कूलों में 90 फीसदी बच्चे बोले गए शब्दों को नहीं लिख पाते, 76 फीसदी स्कूलों में शिक्षण सामाग्री के लिए सहयोग नहीं लिया गया। 73 फीसदी स्कूलों के बच्चों को गणित की साधारण जोड़, घटाना, गुणा-भाग की संक्रियाएं करना नहीं आता है। 66 फीसदी स्कूलों में शाला विकास के लिए अब तक योजना नहीं बनी है। विकासखंड स्तर पर 65 फीसदी स्कूलों के बच्चों को पुरस्कार नहीं मिले और आयु के अनुरूप इनका जनरल नॉलेज ठी नहीं है।
गुणवत्ता सुधार पर 65 फीसदी ने नहीं दिया ध्यान
रिपोर्ट के मुताबिक 65 फीसदी से अधिक स्कूलों में गुणवत्ता सुधार के लिए चल रही गतिविधियों पर अमल ही नहीं किया जा रहा है। करीब दस हजार स्कूल के शिक्षकों ने आज तक प्रोफेशनल लर्निंग कम्युनिटी तक नहीं बनाई है। 60 फीसदी स्कूलों में शाला के विकास के अनुरूप काम भी नहीं हो रहे हैं।
मंत्री, विधायक, सांसद और अफसरों के निरीक्षण प्रतिवेदन के आधार पर आगे शिक्षा का स्तर सुधारने की रणनीति चल रही है। बच्चे गणित और विज्ञान में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। निरीक्षण के बाद कमियों को पूरा नहीं कर पाने के मुद्दे के अलावा कई सारे मुद्दे हैं। कलेक्टर्स को पत्र लिखना तो रूटीन काम है।
– मोहम्मद अब्दुल केसर हक, संचालक , सर्व शिक्षा एवं शिक्षा गुणवत्ताअभियान
निरीक्षण प्रतिवेदन के आधार पर कार्रवाई कर रहे हैं। जल्द ही सभी जिला स्तर के अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी की जाएगी। गुणवत्ता अभियान पर प्रक्रिया चल रही है।
– सुब्रत साहू, सचिव, स्कूल शिक्षा
एक्सपर्ट व्यू
स्कूलों में शिक्षा के गुणवत्ता अभियान तो किया जा रहा है, लेकिन स्कूलों में आउटसोर्सिंग कर व्यापारीकरण किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। प्रशासन के इच्छाशक्ति की कमी है, मॉनिटरिंग में जो कमी पाई गई है उसे दूर करने के लिए त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। निरीक्षण मात्र खानापूर्ति की जा रही है और व्यवहारिक कार्रवाई नहीं हो पा रही है। सरकार शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दे रही है।
– गौतम बंधोपाध्याय, संयोजक, छत्तीसगढ़ शिक्षा का अधिकार फोरम