सिप्ला के खिलाफ न्यायालय का फैसला: पेटेंट और पेशेंट के लिए इसके मायने- विशाख उन्नीकृष्णन

लगातार दूसरी बार दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्विटजरलैंड की बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी के पेटेंट को बरकरार रखा है. यह ड्रग पेटेंट को लेकर किए जाने वाले भविष्य के फैसलों के लिए एक मिसाल बन सकता है. साथ ही तमाम छोटी-छोटी दवा कंपनियों पर इस फैसले का व्यापक असर हो सकता है.

शुक्रवार, 27 नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने टार्सेवा द्वारा विपणन की जाने वाली फेफड़ों के कैंसर की दवा (रासायनिक फार्मूला: एर्लोटिनिब हाइड्रोक्लोराइड) पर रॉश के पेटेंट के दावे को सही ठहराया. रॉश ने आरोप लगाया था कि भारत की दवा कंपनी सिप्ला ने पेटेंट कानून का उल्लंघन करते हुए उसकी दवा एर्लोसिब की बिक्री जारी रखी.

जहां रॉश टार्सेवा की एक खुराक का दाम 4800 रुपये है, सिप्ला की एर्लोसिब 1600 रुपये में मिलती है. हालांकि मरीजों को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मार्च 2016 में रॉश का पेटेंट समाप्त हो जाएगा.

लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, रॉश द्वारा अन्य कई न्यायालयों में स्थानीय दवा निर्माताओं के खिलाफ दायर किए गए इसी तरह के 10 मामलों पर इस फैसले का असर पड़ेगा.

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