इस तथ्य का खुलासा सामाजिक संस्था-बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से किए गए सर्वे से हुआ है। संस्था की ओर से इस सर्वे को सोमवार को जारी किया गया है। बचाए गए ज्यादातर बच्चे जरी मेकिंग के उद्योग में काम करते मिले हैं।
सर्वे के अनुसार वर्ष-2014 में पूरे देश भर में बाल मजदूरी में लगे कुल 5 हजार 253 बच्चों को बचाया गया था। इसमें से 2 हजार 222 बच्चे सिर्फ दिल्ली के थे। इनमें से मात्र 254 ट्रैफिकिंग के मामले में ही पुलिस में शिकायत या मामला दर्ज करवाया था, जो खतरनाक उद्योग में काम करते हुए मिले थे।
बचाए गए बच्चों में एक हजार 289 बच्चों की उम्र 14 वर्ष से कम थी। इनमें से 42 फीसद ऐसे बच्चे थे, जो खुद नाबालिग थे और उन्होंने अपने साथ अन्य नाबालिग साथियों को भी ऐसे उद्योग में काम पर लगाया था। जिन उद्योगों से बच्चे मिले हैं उनमें से ज्यादातर पश्चिमी व उत्तरी दिल्ली के आवासीय क्षेत्र में बनाए गए लघु उद्योग हैं। इनमें से 21 फीसद बच्चों की उम्र 14 साल से कम थी।
ये उद्योगों में बंधक के रूप में काम कर रहे थे। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में बचाए गए बच्चों में 80 फीसद बच्चों को उसके नजदीकी रिश्तेदारों ने ही काम पर लगाया था। कई मामलों में खुद बच्चों के मां-बाप ने ही उसे ऐसे खतरनाक काम पर लगाया था। इसमें से 21 फीसद उनके साथ ही काम करते थे।
माता-पिता के साथ काम करते मिले बच्चों में 80 फीसद घरों में सहायक के रूप में सफाई का काम करते मिले। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 से 2014 के बीच मात्र 185 बच्चों को ही बचाया जा सका था।
सरकार के स्टेट लेबर डिपार्टमेंट की ओर से बनाई योजना के अनुसार हर माह खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे कम से कम 500 बच्चों को मुक्त कराना है। विभाग को दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से भी यह आदेश जारी किया गया था।
संस्था के संस्थापक और नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के अनुसार टैफिकिंग किए जाने वाले ज्यादातर बच्चे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल से लाए गए होते हैं।