हिमालय बचाओ! देश बचाओ! सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि यह हिमालय क्षेत्र में भावी विकास नीतियों को दिशाहीन होने से बचाने का भी रास्ता है। चिपको आंदोलन के दौरान पहाड़ की महिलाओं ने नारा दिया कि मिट्टी, पानी और बयार! जिंदा रहने के आधार! और ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे! नदी ग्लेशियर टिके रहेंगे! ये तमाम नारे पहाड़ के लोगों ने दिए हैं। हिमालयी क्षेत्रों के लोगों, सामाजिक अभियानों तथा आक्रामक विकास नीति को चुनौती देने वाले कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों ने कई बार हिमालय नीति के लिए केंद्र पर दबाव बनाया है।
हिमालय की मिट्टी और पानी पूरे देश के काम आ रहा है। हिमालय ऑक्सीजन का भंडार है, जो जलवायु को तो नियंत्रित करता ही है, यहां से निकलने वाले गदेरों, नदियों और ग्लेशियरों को भी जीवित रखता है। पर उपभोक्तावादी, अविवेकपूर्ण विकासवादी दृष्टि कभी हिमालय में टिकाऊ विकास नहीं कर सकती है। अब समझने का वक्त आ गया है कि हिमालयी समाज, संस्कृति और यहां के पर्यावरण के साथ-साथ देश की सुरक्षा के लिए तत्पर हिमालय को मैदानों के विकासीय दृष्टिकोण से नहीं मापा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा की अविरलता-निर्मलता के लिए महत्वपूर्ण पहल की है। इसमें गंगा के उद्गम क्षेत्र हिमालय की सुरक्षा पर विचार किया जाना चाहिए। संसद में हिमालय के लिए अलग मंत्रालय बनाने की वकालत की गई है। लेकिन हिमालय नीति पर भी विचार होना चाहिए। केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में हिमालय अध्ययन केंद्र खोलने की योजना बनाई है, लेकिन हिमालय के बारे में गठित हिमालय इको मिशन, जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान द्वारा किए गए शोध के आंकड़े हिमालय नीति की जरूरत की ओर संकेत कर रहे हैं। हाल ही में तैयार हिमालय लोक नीति के दस्तावेज में दो बातें हैं, जिसमें आंकड़ों के जरिये बताया गया है कि हिमालय नीति की आवश्यकता क्यों है? दूसरा, हिमालय नीति के बिंदु क्या हैं, जिसके आधार पर एक समग्र केंद्रीय हिमालय नीति की मांग की गई है। इस पर बीते 18 अगस्त को नीति आयोग में विशेषज्ञों के साथ एक बैठक भी हुई है।
अगर समय रहते सरकारों ने हिमालय की चिंता नहीं की, तो बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन का संकट और बढ़ेगा, साथ ही, सुरंग बांधों के शृंखलाबद्ध निर्माण से हिमालयी नदियां सूख जाएंगी। नतीजतन हिमालयी राज्यों में पलायन की समस्या बढ़ेगी। इसकी एक वजह यह भी है कि अधिकांश हिमालयी राज्यों के निवासी जल, जमीन, और सघन वनों के बीच रहकर भी इन पर अपना अधिकार खो चुके हैं।
प्रत्येक वर्ष लगभग 12 लाख मिलियन क्यूबिक मीटर पानी हिमालय की नदियों से बहता है, जो पूरे देश में 40 प्रतिशत जलापूर्ति करता है। अतः नदियों के उद्गम वाले हिमालयी राज्यों में नदियों का प्रवाह निरंतर एवं अविरल बनाए रखना अनिवार्य है। हिमालय का वन क्षेत्र स्वस्थ पर्यावरण के मानकों से अभी अधिक है, इसे बचाए रखने के लिए हिमालयी जैव विविधता का संरक्षण व संवर्धन स्थानीय लोगों के साथ करने की जरूरत है। जल संरक्षण की स्थानीय विधियों को जो प्रोत्साहन मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। इस कारण हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली कुल वर्षा का तीन प्रतिशत भी उपयोग में नहींआता है।
प्राकृतिक संसाधनों के बेहिसाब दोहन के चलते हिमालय के पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। बाढ़, भूकंप, सूखा, वनाग्नि जैसी घटनाओं की पिछले 30 वर्षों से लगातार पुनरावृत्ति हो रही है। इसके चलते अनियमित और बेमौसमी बारिश ने यहां कहर बरपाना शुरू कर दिया है। नतीजतन छोटे किसान प्रभावित हो रहे हैं। सिर्फ हिमालयी क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि देश भर में नदियों के बहाव क्षेत्र में रह रहे लोगों के जीवन एवं जीविका पर संकट आ गया है। नेशनल ऐक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज में हिमालयी ग्लेशियरों पर उत्पन्न संकट का समाधान करने के लिए समुदाय आधारित वनभूमि संरक्षण पर जोर दिया गया है, लेकिन इस पर काम नहीं हो रहा है।
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में से 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का दार्जलिंग जिला हिमालय क्षेत्र में है। यहां की आबादी सीमांत क्षेत्र में सुरक्षा बलों को नैतिक मजबूती प्रदान करती है। इन राज्यों में वन्य जीवों की 1,280 प्रजातियां, 8,000 पादप प्रजातियां, 816 वृक्ष प्रजातियां, 675 वन्य खाद्य प्रजातियां, 1,740 औषधीय पादपों की प्रजातियां मौजूद हैं। यहां की आबादी लगभग 8.50 करोड़ है, जिसमें पांच करोड़ लोग आज भी ईंधन के लिए लकड़ी का प्रयोग करते हैं।
हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली नदियां व उनके साथ बहकर जाने वाली लगभग 36 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी न केवल गंगा, यमुना के मैदानी क्षेत्र, बल्कि संपूर्ण भारत व दक्षिण एशिया के कई देशों के लिए खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। मानसून जैसे वर्षा चक्र के निर्माण में भी हिमालय का महत्वपूर्ण योगदान है।
हिमालय आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत तो है ही, प्राकृतिक देन भी है। इसके अंगों (नदियों, ग्लेशियरों, जंगलों, जमीन) को बिकाऊ नहीं, बल्कि टिकाऊ बनाए रखने में हमारी भूमिका होनी चाहिए। इसलिए केंद्र सरकार को हिमालय क्षेत्र के विकास के लिए एक अलग नीति बनाने की तरफ बढ़ना चाहिए। हिमालयी राज्यों के लिए जलवायु ऐक्शन प्लान, हरित निर्माण, पारिस्थितिकी सेवा, वनाधिकार, आपदाओं का प्रबंधन, सूक्ष्म एवं लघु जल विद्युत परियोजनाओं का विस्तार, जल संरक्षण, हरित एवं कृषि क्षेत्र का संरक्षण करना जरूरी है, ताकि इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका भी सुनिश्चित हो।
-नदी बचाओ अभियान से जुड़े गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता