इस साल अक्टूबर में खुदरा महंगाई की दर बढ़कर पांच फीसद रही है। इसके उलट सितंबर में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 3.6 फीसद पर आ गई है। इसके अलावा ब्याज दरों में 0.50 फीसद की कटौती के बावजूद कर्ज की रफ्तार नहीं बढ़ी है, जबकि निर्यात लगातार घटता जा रहा है। आर्थिक मोर्चे पर एकमुश्त इतनी सारी चुनौतियां सरकार के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर सकती हैं।
खाने-पीने की चीजों में तेजी
ताजा आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर, 2015 में खुदरा महंगाई की दर पांच फीसद हो गई। इसके पिछले माह मुद्रास्फीति की यह दर 4.41 फीसद थी, जबकि एक वर्ष पहले के इसी महीने में यह 4.62 फीसद थी। महंगाई के बोझ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों की कीमतें ही मुख्य तौर पर जिम्मेदार रही हैं।
खाद्य महंगाई की दर 5.34 फीसद बढ़ी है। दालों व संबंधित उत्पादों की श्रेणी में खुदरा कीमतों में 42 फीसद से ज्यादा का इजाफा हुआ है। देश में दालों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी का मुद्दा राजनीतिक तौर पर तूफान उठाए हुए है। बिहार चुनाव में इस मुद्दे को महागठबंधन ने खूब उछाला था।
दोहरे अंकों की रफ्तार पाना मुश्किल
इसी तरह सितंबर, 2015 में औद्योगिक उत्पादन (आइआइपी) की वृद्धि दर 3.6 फीसद रही है। इस साल अगस्त में यह दर 6.2 फीसद थी। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में कल-कारखानों की रफ्तार चार फीसद रही है। इससे साफ हो जाता है कि मौजूद वित्त वर्ष में देश दोहरे अंक में औद्योगिक विकास दर हासिल नहीं कर सकेगा। खासतौर पर जब मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से जुड़े उद्योगों की रफ्तार महज 2.6 फीसद रही है।
रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्रों में सुस्ती
मैन्यूफैक्चरिंग की कमजोरी और निर्यात में लगातार 11 महीनों से गिरावट को मिला कर देखा जाए तो नतीजा यह निकलता है कि जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, वे भयंकर सुस्ती की गिरफ्त में है। जाहिर है कि इससे पढ़ाई लिखाई कर रोजगार के लिए बाजार में आने वाले युवाओं की स्थिति का पता चलता है। हाल के दिनों में कई अर्थशास्त्रियों ने देश में रोजगार विहीन आर्थिक विकास होने पर चिंता भी जताई है।