‘ऐसा अकाल 35 साल में मैंने कभी नहीं देखा’

छत्तीसगढ़ के उत्तर मरवाही इलाके के गांव डेडिया में लोगों ने अब सूखते खेतों में जाकर बारिश के लिए प्रार्थना करना छोड़ दिया है.
साठ दिन पुराने धान की हल्की किस्मों की फसल से अब उम्मीद नहीं रही कि अब वो पनप पाएंगी. गांव के लोगों ने एक दिन तय कर लिया कि पूरा खेत मवेशियों के लिए छोड़ दिया जाए.
गांव के फ़ैसले के बाद चरवाहा लवन सिंह खेतों में जाकर मवेशियों को हांक आए. आज वो बहुत उदास हैं, उन्हें पता है कि आज जानवर जो चारा खा रहे हैं, उसे किसान का धान होना था.
वो उन जानवरों के लिए भी उदास हैं क्योंकि गांव के तालाबों का पानी सूख रहा है. शायद ये इन मवेशियों का गांव में आखिरी दाना पानी है.
सरकार ने गांव में मनरेगा के तहत नए कामों की घोषणा कर रखी है.
लवन सिंह बताते हैं, "नए कामों में अधिकारी पानी रोकने पर बहुत जोर दे रहे हैं लेकिन कुल छह दिनों की बरसात में पानी इतना भी नहीं हुआ कि बह पाए. पानी गिरेगा तभी तो रुकेगा.

 

लवन सिंह से उनकी मजदूरी पूछने पर वो कहते हैं, "किसान को नहीं मिला तो मुझे क्या देंगे साहब. ऐसा अकाल 35 साल की ज़िन्दगी में मैंने कभी नहीं देखा."
वो रोज पोस्ट ऑफिस जा रहे हैं पिछले साल की मजदूरी का भुगतान लेने जो अभी तक नहीं मिली है.
अब की बार दो आषाढ़ का साल था. खुरपा गांव के प्रेम सिंह बहुत खुश थे. सड़क के किनारे की पथरीली जमीन में भी उन्हें उम्मीद थी कि कुछ नहीं तो धान की हल्की किस्में तो जाग ही जाएंगी.
बड़ी मेहनत से उन्होंने पत्थर काटकर खेत तैयार किया था. आषाढ़ ने दगा दे दिया.
लेकिन सावन ने थोड़ी कृपा दिखाई. उधार के बीज, खूब जुते खेतों में डालकर प्रेम सिंह बहुत खुश थे.
पर धान उगते ही, जैसे बादल उनके गांव का पता ही भूल गए. भादो की तेज़ झुलसती धूप में आख़िर पौधों ने धीरे-धीरे दम तोड़ दिया.
पीले हो चुके खेत में प्रेम सिंह बिना बाली का धान काट रहे हैं रोज थोड़ा-थोड़ा जानवरों के लिए.

 

 

पूरे गांव में यही हालत है. उत्तर मरवाही के 53 गांवों के 40 हज़ार लोग अपने लगभग 25,000 मवेशियों के साथ भयानक सूखा झेल रहे हैं.
रूप सिंह नौवीं कक्षा के छात्र हैं. वो बरसात में पंजाब से अपने गांव में लौटकर आते मजदूर रिश्तेदारों से वहां की कहानियां बड़े चाव से सुना करते थे.
इस बार उनके पिता ने कह रखा है कि हो सकता है इस बार उनका परिवार भी अपने भाइयों के साथ कमाने कहीं दूर जाए.
हो सकता है कि रूप सिंह अपने भाई बहनों के साथ स्कूल न जा सकें क्योंकि उन्हें पंजाब जाना है. वह पंजाब जाना तो चाहते थे पर इस तरह नहीं.
रूप सिंह ने अपनी मां से बात कर रखी है कि वह मनरेगा में अपना पूरा सहयोग देंगे. इस साल वे रुक जाएं ताकि वह अपने औरदोस्तों के साथ अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *