वर्ष 2013-14 में 78.77 लाख टन सरसों की पैदावार हुई थी, जो 2014-15 में घटकर 63.09 लाख टन रह गई। इस कमी के चलते बाजार में सरसों तेल के मूल्य में तेजी का रुख बन गया है। दिल्ली की जिंस बाजारों में सरसों तेल का मूल्य 145 रुपये किलो तक बोला जाने लगा है। बीते जून माह में यह 116 रुपये किलो बिक रहा था। लेकिन इस तरह की तेजी का रुख दिल्ली और एनसीआर में ही है।
देश के अन्य शहरों में सरसों तेल में इतनी तेजी नहीं दिख रही है। मुंबई में सरसों तेल जून में 97 रुपये किलो था, जो दो नवंबर को बढ़कर 145 रुपये तक पहुंच गया है। जबकि कोलकाता में यह 104 रुपये किलो से बढ़कर 123 रुपये हो गया है। पटना में इसका भाव 92 रुपये से बढ़कर 115 रुपये प्रति किलो बोला जा रहा है।
जिंस बाजार के सूत्रों की मानें तो राजधानी दिल्ली में मुनाफाखोरी के लिए जमाखोरों की सक्रियता से सरसों तेल में तेजी आई है। दरअसल, सरसों तेल का उपयोग देश के कुछ क्षेत्रों में बहुत अधिक होता है, लेकिन मजेदार यह है कि उन राज्यों में इसके मूल्य में दिल्ली जैसी तेजी नहीं आई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में सरसों का तेल बहुत अधिक होता है।
खाद्य तेलों की घरेलू खपत का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल खाद्य तेलों का भारी स्टॉक होने की वजह से कीमतें मद्धिम चल रही हैं। इसलिए सरसों तेल की कम आपूर्ति का बहुत असर नहीं पड़ेगा। लेकिन सरसों तेल के भाव में तेजी का रुख होते ही केंद्र सरकार के माथे पर बल पड़ने लगे हैं।