सब्सिडी नहीं बन सकती अस्तित्व का आधार : अरुण जेटली

मुंबई। रीयल एस्टेट क्षेत्र तेज आर्थिक विकास का एक अहम इंजन है। ऐसे में बिल्डरों को सरकारी सब्सिडी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। इसके बजाय उन्हें बाजार अर्थव्यवस्था में फलना-फूलना सीखना चाहिए। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को आवास क्षेत्र के एक सम्मेलन में रीयल एस्टेट डेवलपरों को यह कड़वी नसीहत दे डाली।

जेटली ने यहां क्रेडाई-बैंकॉन समिट में अपने संबोधन में कहा कि इस कारोबार से मंदी का दौर जल्द समाप्त होने वाला है। इस क्षेत्र को बाजार अर्थव्यवस्था पर जीवित रहना होगा और सब्सिडी उसके अस्तित्व का आधार नहीं होनी चाहिए। रीयल एस्टेट क्षेत्र कराधान से जुडे अपने सुझाव हाल ही में गठित कर मुद्दों संबंधी समिति को दे। सरकार इस समिति की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करेगी। इस सम्मेलन में रीयल एस्टेट फर्मों और होम लोन उपलब्ध कराने वाली कंपनियों के आला अधिकारी शामिल हुए।

वित्त मंत्री के मुताबिक, जहां तक भारतीय अर्थव्यवस्था का सवाल है तो यह क्षेत्र भविष्य में महत्वपूर्ण कारक साबित होगा। आवास के लिए जमीन की आसान उपलब्धता बेहद अहम है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं, जबकि ब्याज दरें तो पहले ही नीचे आ गई हैं। इससे आवास परियोजनाओं की फंडिंग से जुड़ी लागत कम हुई है। यह आगे और कम होगी।

मददगार नहीं ग्लोबल माहौल

अर्थव्यवस्था को लेकर जेटली ने कहा कि वैश्विक माहौल मददगार नहीं रहा है। इसका असर भारत में निर्यात में गिरावट के रुप में दिख रहा है। भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है। हमारे संस्थागत बचाव के उपाय ऐसे होने चाहिए कि ग्लोबल स्तर पर आने वाले उतार-चढ़ाव का मुकाबला करने की क्षमता और बढ़े।

भारत यदि सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था नहीं, तो इसमें कोई सवाल नहीं कि हम तेजी से बढ़ने वालों में से एक हैं। राजस्व प्राप्ति के बारे में संकेत उम्मीद बढाने वाले दिखते हैं। विश्व बाजार में कच्चे तेल के कम दाम से होने वाली बचत का इस्तेमाल सिंचाई और ढांचागत क्षेत्र में किया जा रहा है।

बिजली क्षेत्र पर भी जल्द देंगे ध्यान

वित्त मंत्री ने कहा कि बिजली क्षेत्र की स्थिति में सुधार लाना भी एक महत्वपूर्ण काम है। सड़कों व राजमार्गों और स्टील क्षेत्र को मुश्किल से निकालने के बाद बहुत जल्द बिजली क्षेत्र पर ध्यान देंगे। पावर सेक्टर की सबसे बड़ी चुनौती आखिरी छोर पर है, क्योंकि देश की विद्युत वितरण कंपनियां वित्तीय संकट से जूझ रही हैं। इसकी बड़ी वजह वे खुद हैं। ये वितरण कंपनियां बिजली की असल कीमत नहीं वसूल रही हैं। घाटे में बिजली बेचने और चोरी के चलते वे बैंकों के कर्ज पर निर्भर हो गई हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *