दुनिया भर की सेनाओं में महिलाओं को तमाम स्तरों पर सामाजिक, व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें महत्वपूर्ण हैं- यौन शोषण, कम मान्यता मिलना, पेशेवर रूप से असंतुष्टि, अनुकूल व आरामदेह स्थिति का न होना, कामकाज की परिभाषा को लेकर संदेह होना, महिला अफसरों की नियुक्तियों को लेकर सवाल वगैरह।
सबसे पहला सवाल तो यही है कि महिलाओं को फौज में सुरक्षा और सम्मान कैसे मिले? महिला आवेदकों से लेकर अफसरों तक को यही चिंता परेशान करती है। अमेरिकी और ब्रिटिश समाज काफी खुला माना जाता है, फिर भी वहां के सुरक्षा बलों में महिलाओं के साथ होने वाली यौन-ज्यादतियां चौंकाने वाली हैं। इस मामले में अमेरिका में सिर्फ दो से तीन प्रतिशत दोषी अफसरों का कोर्ट-मार्शल होता है। इसी तरह ज्यादातर देश फौज में महिलाओं को कम ही मान्यता देते हैं। वहीं ज्यादातर महिला अफसर यह मानती हैं कि उनकी प्रतिस्पर्द्धा को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। कई यह भी शिकायत रखती हैं कि तकनीकी योग्यताओं के बावजूद उन्हें डेस्क वर्क तक सीमित रखा जाता है।
कई महिला अफसर मानती हैं कि पुरुषों के बीच उनकी मौजूदगी से माहौल सामान्य नहीं रह पाता, बल्कि तनाव भरा होता है। पुरुषों को लगता है कि महिलाओं के होने से वे वैसा कुछ नहीं बोल पाएंगे, जिनसे उनका कामकाज संबंधी तनाव कम हो। यही नहीं, फौज का जो कामकाज है, वह काफी हद तक हिंसा और हथियार से जुड़ा है। एक जवान को इसलिए प्रशिक्षित किया जाता है कि वह सामने वाले पर वार कर सके। ऐसे में जो माहौल बनता है, वह महिलाओं के लिए अप्रिय और अशिष्ट कहा जाता है। महिला अधिकारी भी अपनी स्थिति को लेकर उलझन में होती हैं। अगर वे महिलाओं जैसा बर्ताव करती हैं तो साथियों के बीच उनकी उपस्थिति नगण्य रहती है। और अगर मेलजोल का भाव रखती हैं तो सम्मान को खतरे में पाती हैं। इन समस्याओं से हमारी सेना भी अछूती नहीं है, इसलिए स्थितियां सुधारनी होंगी।