दुर्घटना के बाद शिवानी की नौकरी चली गयी. कहीं काम मिलना मुश्किल हो गया. ऐसे में उनकी पेंटिंग का शौक उनका मददगार बना. हालांकि, बड़ी मुश्किल से वह पेंटिंग कर पाती थी, लेकिन प्रदर्शनियों, मेले और अन्य आयोजनों में जहां भी मौका मिलता, वह अपनी कला का प्रदर्शन करतीं.
इनकी बिक्री से कुछ आय भी हो जाती. वह कहती हैं, ‘मुझे मालूम था कि मैं बहुत अच्छी पेंटर नहीं हूं, लेकिन लोग मेरी पेंटिंग्स खरीदते थे़ इसकी दो वजहें हो सकती हैं. या तो वे लोगों को पसंद आती होंगी या वे इसलिए खरीदते होंगे कि उन्हें एक नि:शक्त ने बनाया है.’ दूसरी वजह शिवानी को नागवार गुजरी. उन्होंने इस काम को वहीं छोड़ दिया और किसी अन्य क्षेत्र में हाथ आजमाने का फैसला किया़
उन्हीं दिनों शिवानी को नि:शक्तता में पेश आनेवाली चुनौतियों का सामना करने से संबंधित दो महीने का एक कोर्स करने के लिए इंगलैंड जाने का मौका मिला़ यहां से उन्हें जिंदगी का एक नया मकसद मिला.
उन्होंने जाना कि नि:शक्तों के कुछ अधिकार भी होते हैं. इंगलैंड से लौटकर शिवानी इंडियन स्पाइनल इंजुरी सेंटर से जुड़ीं. यहां उन्होंने 1996 से 2002 तक काम किया़ इसके बाद उन्होंने नि:शक्त और बुजुर्गजनों को स्वावलंबी बनाने के लिए युनाइटेड नेशंस की ओर से बैंकॉक में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया़ इसी दौरान शिवानी की मुलाकात ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट विकास शर्मा से हुई़ दोनों ने मिलकर बुजुर्गों और नि:शक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पीडब्ल्यूडी के लिए गाइडलाइंस तैयार किये. इसके अनुसार, सरकारी भवन तैयार किये जायें.
इस बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए शिवानी ने मथुरा स्थित राय यूनिवर्सिटी और इंगलैंड की रीडिंग यूनिवर्सिटी से दो-दो साल की डिग्री ली़ भारत लौटकर शिवानी ने विकास शर्मा और उनके साथी आइटी एक्सपर्ट सचिन वर्मा के संग ‘एक्सेसएबिलिटी’ की स्थापना की़ यह एक कंसल्टेंसी कंपनी है, जो समाज में नि:शक्तजनों के लिए आरामदायक माहौल और उन्हें रोजगार के साधन दिलाने में मदद करती है़