उल्लेखनीय है कि किसी भी अध्ािनियम या एक्ट में बदलाव का अध्ािकार केवल विध्ाानसभा को है। राज्य सरकार को यदि विध्ाानसभा सत्र की गैरमौजूदगी में कोई कानून बनाना होता है, तो उस अध्यादेश के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूर कर राज्यपाल के पास भेजा जाता है। अध्यादेश पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने के बाद इसे विध्ाानसभा सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह में विध्ोयक के रूप में पारित कराना जरूरी होता है। ऐसा न होने की दशा में वह अध्यादेश स्वत: शून्य हो जाता है।
क्यों किया था बदलाव
प्रदेश में कोई भी निवेशक या उसकी कंपनी 10 एकड़ सिंचित कृषि भूमि, 20 एकड़ अर्द्ध सिंचित और 30 एकड़ से अधिक असिंचित भूमि नहीं खरीद सकता है। ऐसे में प्रदेश में निवेशकों को बड़े उद्योगों के लिए सैकड़ों-हजारों एकड़ जमीन खरीदने में यह कानून आड़े आ रहा था। निवेशकों को जमीन उपलब्ध्ाता सरल बनाने के लिए ही इस कानून में बदलाव किया गया था। इसमें ये शर्त रखी गई है कि निवेशक ने जिस काम के लिए जमीन खरीदी है उसे उक्त जमीन पर 3 वर्ष के भीतर अपना निवेश करना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उक्त भूमि सीलिंग एक्ट के दायरे में आ जाएगी। इसे सरप्लस मानते हुए राज्य सरकार भूमि को अपने अध्ाीन ले लेगा, लेकिन नया अध्यादेश नहीं आने से सरकार की मेहनत पर पानी फिर गया।
सरकार चाहे तो फिर ला सकती है अध्यादेश
विभाग के अफसरों का कहना है कि उन्होंने अध्यादेश का प्रस्ताव बनाकर मुख्यमंत्री सचिवालय को भेज दिया है। यदि सरकार इसकी जरूरत समझती है तो इसे कैबिनेट में मंजूर कर एक बार फिर इसे लागू किया जा सकता है। इसके अलावा यदि सरकार चाहे तो विध्ोयक का प्रस्ताव बनाकर आगामी विध्ाानसभा सत्र में भी इसे पारित करा सकती है। वर्तमान में कानून लागू न होने से सीलिंग एक्ट के प्रावध्ाान लागू होंगे। यानि कि अब कोई भी निवेशक निर्ध्ाारित सीमा से अध्ािक कृषि भूमि नहीं खरीद सकेंगे।