रोगों से जूझते टिहरी बांध के गांव– सुरेश भाई

टिहरी बांध के चारों ओर बसे सौड़, उप्पू, डांग, मोटणा, भैंगा, जसपुर, डोबरा, पलाम, भल्डियाना और धरवाल आदि गांवों में सितंबर की शुरुआत से ही नई समस्या खड़ी हो गई है। इन गांवों में मलेरिया और वाइरल बुखार का प्रकोप फैल रहा है। सात-आठ सितंबर को सौ से ज्यादा लोगों को तेज बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द जैसी शिकायतों के कारण नई टिहरी जिला अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।

मरीजों की इतनी अधिक संख्या थी कि उन्हें वार्ड के बाहर भी लेटाना पड़ा। भर्ती मरीजों में दो लोगों की मौत भी हो गई। इसका कारण यह है कि टिहरी झील का जल स्तर ऊपर उठने से झाडि़यों व अन्य स्थानों पर मच्छर पैदा हो गए हैं, जो झील से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में भारी परेशानी पैदा कर रहे हैं। झील के किनारे बहकर आई लकड़ी और अन्य गंदगी भी इसका कारण है। झील के किनारे रहने वाले लोग पानी से दुर्गंध आने की शिकायत भी कर रहे हैं।

यह दिक्कत आने वाले समय में और बढ़ सकती है, क्योंकि बांध में लगातार बढ़ रहे ‘गाद’ के कारण उसका जल स्तर ऊपर उठ रहा है। भागीरथी और भिलंगना नदियों की 20 सहायक जल धाराएं हैं, जहां से भूस्खलन जारी है। इसके कारण टनों मलबा बांध में जमा हो रहा है।

अनुमान है कि हर साल प्रति सौ वर्ग किलोमीटर झील में 16. 53 हेक्टेयर मीटर मलबा जमा हो रहा है। इससे डेल्टा बनने के प्रमाण सामने आ रहे हैं। इन सच्चाइयों का वैज्ञानिकों ने पहले भी अपनी दर्जनों रिपोर्टों में खुलासा किया था, पर तब उनको खारिज कर दिया गया।

टिहरी बांध में समाहित भागीरथी और भिलंगना नदियों के किनारों पर अनेक स्थानों पर भूस्खलन क्षेत्र है। इनमें से कंगसाली, डोबरा और स्यांसू के ऊपर की नदी धारा पर स्थित भूस्खलन क्षेत्र प्रमुख हैं। इसी तरह, रोलाकोट के आस-पास भूस्खलन क्षेत्र बन जाने की आशंका भी बताई गई थी। भिलंगना घाटी में नंदगांव, खांड, गडोलिया वगैरह कई स्थान चिन्हित किए गए थे।

 

इन सभी क्षेत्रों में इस समय भूस्खलन की समस्या पैदा हो गई है। हर साल बांध में पानी बढ़ने और कम होने के प्रभाव से यहां के गांव अस्थिर हो गए हैं। उन्हें पुनर्वास की अपनी मांग सरकार तक पहुंचाने के लिए अदालत की शरण तक लेनी पड़ी है। दूसरी ओर, टिहरी जल विकास निगम कई स्थानों पर अपने वैज्ञानिकों को भूस्खलन क्षेत्र के उपचार के लिए भेजता है, लेकिन उनके जलाशय से उत्पन्न भूस्खलन को वे नहीं रोक पा रहे हैं। 
टिहरी बांध पर 2000 मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए पिछले 35 वर्ष में अरबों रुपये खर्च हो गए, लेकिन वास्तव में अभी तक 1000 मेगावाट से ज्यादा विद्युत उत्पादन के प्रमाण नहीं मिले हैं। लेकिन स्थानीय नागरिकों के लिए इससे पैदा होने वाली समस्याएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। इतना ही नहीं, अब तो ऐसी समस्याएं भी सामने आ रही हैं, जिनके बारे में पहले बहुत ज्यादा सोचा ही नहीं गया था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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