अरविन्द शर्मा, इटारसी(मध्यप्रदेश)। अपनी ससुराल में शौचालय न होने से तंग आकर एक विवाहिता पिछले दो साल से पिया का घर छोड़कर अपने पीहर (मायके) में रहने को मजबूर है। पति के साथ सात फेरे लेकर हर विवाहिता यह वचन लेकर जाती है कि अर्थी उठने तक वह अपने पिया के घर ही रहेगी, लेकिन शाहपुर तहसील के ग्राम पतौआपुरा में ब्याही एक नवविवाहिता को पक्का शौचालय न होने से आ रही दिक्कतों के चलते ससुराल छोड़ना पड़ा। दो साल से विवाहिता अपनी मासूम बच्ची के साथ मालवीयगंज इटारसी स्थित अपने मायके में रहने को मजबूर है।
क्या है मामला
मालवीयगंज निवासी शांतिबाई-दुलीचंद दायमा की बेटी सीमा का विवाह पांच साल पहले शाहपुर तहसील के पतौआपुरा निवासी लक्ष्मण निबौदा के पुत्र मोनू उर्फ मोहन से हुआ था। अपने पिया के घर खुशियों का नया संसार रचाने का सीमा का सपना दूसरे दिन ही टूट गया, जब उसे पता चला कि उसके ससुराल में शौचालय ही नहीं है। ससुराल वालों ने कह दिया सब जंगल में शौच जाते हैं, तुम भी जाओ।
मजबूर सीमा ने हालात से समझौता कर लिया। ठंडी-बारिश-रात-अंधेरे सूने जंगल में जाना सीमा की दिनचर्या बन गई। दो साल तक सीमा सब कुछ बर्दाश्त करती रही। सास-ससुर और पति से दर्जनों मिन्न्तें कर शौचालय बनाने की मांग की, लेकिन बदले में डाट-फटकार और प्रताड़ना मिली। जंगल में उसे अपनी अस्मत का डर सताता। सूने जंगल में शराबखोर और जुआरी उसे आए दिन छेड़ते। रेलवे ट्रेक किनारे बैठने वाले असामाजिक तत्व उसे परेशान करते रहते।
आखिरकार सीमा के सब्र का बांध टूट गया। दो साल में सीमा गर्भवती हो गई। ऐसे हाल में उसने ठान लिया कि जब तक ससुराल में शौचालय नहीं, तब तक ससुराल भी उसकी नहीं। पेट में गर्भ लिए सीमा दो साल पहले ससुराल छोड़कर इटारसी अपने मायके आ गई। यहां उसने बेटी को जन्म दिया। दो साल से मायके में ही सीमा और उसकी बेटी का लालन-पालन हो रहा है।
ननद जाती हैं पड़ोसियों के घर
सीमा के अनुसार उसका पति मोनू एक शोरूम पर काम करता है। पति से कई बार शौचालय बनाने को कहा लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया। सीमा की ननद जब मायके आतीं तो पड़ोसियों के यहां बने शौचालय में चली जातीं, लेकिन उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता। इससे तंग आकर सीमा ने ससुराल छोड़ने की ठानी।
सीमा कहती है कि मुझे ससुराल में सब कुछ मंजूर है बस शौचालय बन जाए तो मैं वापस लौट जाऊंगी, लेकिन ससुराल वाले इतनी निर्दयी हैं कि उसके आने के बाद खबर तक नहीं ली। ऐसे हाल में अपनी दूधमुंही बच्ची को लेकर सीमा पीहर में दिन काट रही है। सीमा बताती है कि गांव के अधिकांश घरों में पक्के शौचालय बने हैं लेकिन उसके घर में शौचालय नहीं है। सीमा के पीहर वाले कहते हैं कि हम अपनी बेटी को जब तक नहीं भेजेंगे जब तक उसके घर में पक्का शौचालय नहीं बन जाता।
पहला मामला नहीं..
शौचालय की वजह से ससुराल छोड़ने का यह मामला पहला नहीं है।पूर्व में भी आदिवासी जिले बैतूल की एक विवाहिता ने घर छोड़ा था। मामला उजागर होने के सरकार ने उस महिला को न सिर्फ सम्मानित किया, बल्कि उसे मर्यादा अभियान का ब्रांड एबेंसडर भी बनाया गया।