आशाओं का इंद्रधनुष– डा.वी के पॉल

अग्रिम मोर्चे पर पैदल सैनिकों की सहायता से ही कुछ महत्वपूर्ण युद्ध जीते जाते हैं। मिशन इंद्रधनुष के दूसरे चरण का आगाज इसी अक्तूबर में होने वाला है, और इस अभियान के पैदल सैनिक निश्चय ही स्वास्थ्य सेविकाएं हैं, जो बच्चों का टीकाकरण कर टीके से रोके जाने वाले रोगों से लड़ने में सहायता कर रही हैं। गर्मी की तेज धूप हो या मानसून की तेज बारिश, ये स्वास्थ्य सेविकाएं सुदूर क्षेत्रों में जाकर यह सुनिश्चित करती हैं कि हर बच्चों को जरूरी टीके लगे। वे सिर्फ मौसम से ही नहीं लड़तीं, बल्कि निरक्षरता, जातिगत भेदभाव और धार्मिक मान्यता भी उनकी राह में रुकावटें हैं। अभी स्थिति यह है कि भारत में मुफ्त टीकाकरण होने के बावजूद हर बच्चों को टीका नहीं लग सका है। औसतन 89 लाख बच्चे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम (आरआई) के तहत उपलब्ध एक या एक से अधिक टीकों से वंचित हैं। मिशन इंद्रधनुष का यही मकसद है कि वर्ष 2020 तक बिना टीका लगे या एकाध टीका लगे बच्चों को सभी सात रोगों- टिटनेस, पोलियो, टीबी, खसरा, हेपेटाइटिस बी, काली खांसी और डिप्थीरिया से बचाव के टीके लग सकें।

पल्स पोलियो अभियान की तरह, जिसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर पोलियो की बूंद बच्चों को पिलाते हैं, मिशन इंद्रधनुष के तहत घर-घर जाकर टीका नहीं लगाया जा सकता। बच्चों या गर्भवती महिलाओं को अपने इलाके में बनाए गए टीकाकरण कैंपों में जाना होता है। ऐसे में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता मसलन, आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी सेविका ही बच्चों या मांओं को कैंपों तक आने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कहना अतिशयोक्ति नहीं कि ग्रामीण और वंचित तबकों तक सरकारी स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने में आशा कार्यकर्ताओं का प्रमुख योगदान है। वे बच्चों के जन्म का रिकॉर्ड रखती हैं और मांओं से मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि कोई बच्चा टीकाकरण से छूट न जाए। इतना ही नहीं, वे टीकाकरण का महत्व लोगों को समझाते हुए उन्हें बताती हैं कि अगर समय पर बच्चों को टीका न लगा, तो किन-किन रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

इसी तरह एएनएम कार्यकर्ता भी पंचायत सदस्य, स्कूल शिक्षक और समाज के बड़े-बुजुर्गों के साथ मिलकर लोगों को टीकाकरण कैंप आने और अपने बच्चों को टीकाकरण के लिए प्रेरित करती हैं। आम लोगों के साथ भरोसे का जो संबंध आशा और एएनएम कार्यकर्ता बनाती हैं, वह भारत में टीकाकरण अभियानों की सफलता में काफी कारगर है। यह सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का अनवरत प्रयास ही है कि मिशन इंद्रधनुष के तहत अब तक 75 लाख से अधिक बच्चों को टीका लगाया जा चुका है और 19.7 लाख बच्चे पूर्ण टीकाकरण से लाभान्वित हो चुके हैं।

बहरहाल, मिशन इंद्रधनुष के तहत कई रोगों से बचाव के लिए वक्त-वक्त पर टीके लगाए जाते हैं, जिसके लिए एक नियत समय तक निगरानी जरूरी है। लिहाजा आशा और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की चुनौतियां बड़ी हैं। मगर प्रयास हमको-आपको भी करना होगा। पलायन की वजह से एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसने वाले परिवारों को खास सावधानी रखनी चाहिए। इसी तरह दैनिक कामगार भी अपने बच्चों को नियत समय पर कैंप नहीं ला पाते,क्योंकि उन्हें दिहाड़ी खोने का डर होता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए जरूरी है कि हर बच्चे का टीकाकरण कार्ड बने।

-लेखक एम्स में बाल रोग विभाग के प्रमुख हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *