ब्याज दर घटाए जाने की संभावना पर कमजोर मानसून का साया

मुंबई। अगले हफ्ते रिजर्व बैंक नीतिगत ब्याज दरें चौथाई फीसदी घटाकर चार साल के निचले स्तर पर लाएगा, ऐसी संभावना तो है, लेकिन महंगाई इस पर पानी फेर सकती है।

आरबीआई के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि कीमतों में एक बार फिर वृद्घि शुरू होने की चिंता ब्याज दरें घटाने के राजनीतिक दबाव पर हावी है। इस लिहाज से आगामी महीनों में तेजी से कर्ज सस्ता होने की राह आसान नहीं लग रही है।

असल में इन दिनों ब्याज दरों का मसला दो अलग-अलग नजरिए से प्रभावित है। सरकार अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए बेताब नजर आ रही है। दूसरी तरफ रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का ध्यान लंबी अवधि में महंगाई दर 4 प्रतिशत के दायरे में रखने पर केंद्रित है। वे कीमतों में अस्थिरता का दौर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं।

रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने कहा, ‘महंगाई को लेकर अब भी यकीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि गवर्नर इस मसले को लेकर सतर्क हैं। थोड़ा इंतजार करके यह जान लेने में वाकई समझदारी है कि महंगाई दर में मौजूदा गिरावट किस हद तक स्थायी है।’

मुख्य रूप से कमोडिटी की कीमतें कम होने से महंगाई दर घटी है। लेकिन, अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय बैंक इस बात को लेकर चिंतित है कि कमजोर मानसून की वजह से खाने-पीने की चीजें महंगी हो सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो महंगाई को हवा-पानी मिलेगी और इस बात की आशंका बढ़ेगी भविष्य में कीमतें और तेज होंगी। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में कभी भी वृद्घि शुरू हो सकती है। जब तक सरकार आपूर्ति और परिवहन संबंधी बाधाओं का हल नहीं निकाल लेती, तब तक तो यह चिंता बनी रहेगी।

हालांकि अमेरिका में फिलहाल ब्याज दर नहीं बढ़ाई गई है, लेकिन संकेत दिए गए हैं कि साल के अंत तक ऐसा किया जा सकता है। यह आशंका भी रिजर्व बैंक की चिंता बढ़ा रही है। अधिकारियों ने कहा कि अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने की स्थिति में भारत से विदेशी पूंजी निकलेगी और रुपया कमजोर होगा।

राजन ने पिछली घटनाओं से बहुत कुछ सीखा है। उनके पूर्ववर्ती गवर्नर दुवुरी सुब्बाराव ने वैश्विक वित्तीय संकट की मुश्किलों से निपटने के लिए नीतिगत ब्याज दरों में धड़ाधड़ कटौती की थी। कुछ इस कदर कि अप्रैल 2009 में रेपो रेट महज 4.75 प्रतिशत रह गया, जो जुलाई 2008 में 9 प्रतिशत था। जाहिर है, करीब 9 महीनों में ही ब्याज दर आधी हो गई थी। इसका असर यह हुआ कि महंगाई दर 10 प्रतिशत के ऊपर पहुंच गई। इससे निपटने के लिएरिजर्व बैंक को ब्याज दरें लगातार बढ़ानी पड़ी और अक्टूबर 2011 में रेपो रेट एक बार फिर 8.50 प्रतिशत हो गया।

आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा, ‘राजन चाहते हैं कि ब्याज दर कम रहे और ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रहे। कोई भी केंद्रीय बैंक तभी पूरी सक्रियता दिखा सकता है जब महंगाई नियंत्रण में हो।’

 

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