MP में इस चिड़िया के नाम पर हर साल क्यों खर्च हो रहे 10 करोड़, जानिए अभी

भोपाल. आखिरी बार एकमात्र सोन चिरैया 2011 में दिखाई दी थी। इस पक्षी की कोई हलचल न करेरा में है, न घाटीगांव में। मगर वन विभाग के अफसर मानने को राजी नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोन चिरैया जहां भी होगी, अपने पारंपरिक घर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) घाटीगांव में लौटकर जरूर आएगी। अब सबूत के तौर पर कहीं से आवाज ही सुनाई दे जाए इसके लिए हियरिंग एड्स, कैमरे और स्कवाड लगाए गए हैं। इस लुप्त जीव के नाम पर सालाना 10 करोड़ रुपए की रकम हवा हो रही है।

ग्वालियर जिले के घाटीगांव की जीआईबी सेंक्चुरी में अवैध खनन की वजह से खत्म हो चुके घास के मैदानों को विकसित किया जा रहा है। किसी कोने से इस चिरैया की चहचहाहट ही सुनाई दे जाए। दो सौ किलोमीटर क्षेत्र में फैंसिंग की जा रही है। इस काम के लिए लगभग पांच करोड़ रुपए खर्च करने की तैयारी है। मगर सोन चिरैया गई कहां? वन विभाग का अंदाजा है कि संभव है वह यहां से राजस्थान के फलौदी, पोखरन, मोहनगढ़ और रामगढ़ की सेंक्चुरी में उड़कर चली गई हो। यह पक्षी 100 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।

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