58 साल में मात्र ढाई फीसदी बढ़ी दालों की खेती

नई दिल्ली। दालों की बढ़ती कीमतों के लिए इस साल भले ही रबी फसल पर पड़ी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार को जिम्मेदार बताया जा रहा हो, लेकिन आंकड़ों के अनुसार, इसका प्रमुख कारण सालों से दालों की खेती की अनदेखी है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व खाद्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही हैं।
गेहूं का रकबा 164 फीसदी और धान का रकबा 36 फीसदी बढ़ा
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले 58 साल में जहां धान का रकबा 36 फीसदी और गेहूं का 164 फीसदी बढ़ा है, वहीं दाल का रकबा 1957-58 से अब तक मात्र ढाई फीसदी बढ़ा है। 1957-58 में दाल का रकबा 225.4 लाख हेक्टेयर रहा था जो 2014-15 में मात्र 2.48 फीसदी बढ़कर 231 लाख हेक्टेयर रहा। इस दौरान धान का रकबा 323 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 438.6 लाख हेक्टेयर और गेहूं का रकबा 117.3 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 309.7 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
पिछले 58 साल में सबसे कम बढ़ा दलहन उत्पादन
उत्पादन के मामले में भी दाल दूसरे अनाजों से काफी पीछे रही है। इसका प्रमुख कारण इन वर्षों के दौरान अनाज में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर सरकार का पूरा जोर होने के कारण दालों की अनदेखी रही है। वर्ष 1957-58 से 2014-15 के बीच चावल का उत्पादन 255.3 लाख टन से 311 फीसदी बढ़कर 1048 लाख टन, गेहूं उत्पादन 79.9 लाख टन से 1013 फीसदी बढ़कर 889.4 लाख टन और मोटे अनाजों का उत्पादन 96 फीसदी बढ़कर 417.5 लाख टन पर पहुंच गया। वहीं, इस अवधि में दाल उत्पादन 95.6 लाख टन से 80 फीसदी बढ़कर 172 लाख टन पर रहा।
16 महीने में 43 फीसदी महंगी हुई दालें
ऐसा नहीं है कि इस साल के आरंभ में रबी की फसल को हुए नुकसान के बाद ही दाल की कीमतों में तेजी शुरू हुई है। सरकार द्वारा जारी थोक महंगाई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2014 से मार्च 2015 के बीच प्याज के बाद सबसे ज्यादा 13.22 फीसदी की बढ़ोत्तरी दाल की कीमतों में ही दर्ज की गई। इस साल इसकी रफ्तार में और तेजी आई और अप्रैल से अगस्त के बीच इसकी थोक कीमत 26.45 फीसदी बढ़ गई। इस प्रकार अप्रैल 2014 से अगस्त 2015 के बीच दाल के दाम 43.17 फीसदी बढ़ चुके हैं। पिछले साल अगस्त के मुकाबले इस साल अगस्त में दाल के खुदरा दाम भी 25.76 फीसदी बढ़ चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व खाद्य संगठन के अनुसार, विकासशील देशों के लोगों के स्वास्थ्य के लिए दाल एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है। यह गरीबों के लिए प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत है। लेकिन, पिछले डेढ साल में 43 फीसदी दाम बढ़ने से देश में यह गरीबों की थाली से दूर होती जा रही है।

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