जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझने के लिए पर्यावरण मंत्रालय कई नई पहल पर मंथन कर रहा है। हरित भारत मिशन से कई मंत्रालयों की योजनाओं को जोड़ने के लिए पहल की जा रही है।
मनरेगा जैसी महात्वाकांक्षी योजनाओं में इसी अहम भूमिका की संभावनाओं को महसूस कर ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसके लिए काम शुरू कर दिया है। भारत ने पेरिस सम्मलेन को विकासशील देशों पर बंदिशों को थोपने का विरोध करते हुए स्वत: उठाए जा रहे कार्यक्रमों पर सीमित रखने पर जोर दिया है।
लिहाजा एजेंडे के लिए विभिन्न मंत्रालयों से विचार विमर्श के बाद पहल को आईएनडीसी में शामिल किया जा रहा है।देश में वन क्षेत्रों में बढ़ोतरी और इको प्रणाली सेवाओं में सुधार के लिए उद्योगों को भी हरित भारत मिशन से जोड़ा जा रहा है। मनरेगा में इस विशेष अभियान के लिए 4 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया जा रहा है।
हरित भारत मिशन पर 13 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। उद्योगों के लिए वनों के कटने की क्षतिपूर्ति के लिए उपलब्ध फंड से राज्यों को इस साल 6 हजार करोड़ रुपये दिए जाएंगे। जबकि राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम के लिए 600 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं।
देश में वर्तमान में 697898 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। चार साल में वन क्षेत्र में 5871 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। इसे कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयास के रूप में आईएनडीसी में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा केंद्र द्वारा 8.5 प्रतिशत वनरोपण का लक्ष्य तय करने को भी भारत की ओर से महत्वपूर्ण कदम के रूप में गिनाया जाने वाला है।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 90 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों के किनारे पेड़ लगाने की योजना बनाई है। इसे भी भारत की ओर से किए गए पहल में शामिल किया जा सकता है। शहरी वानिकी, स्कूल नर्सरी, गंगा किनारे वनरोपण जैसी योजनाओं का भी जिक्र आईएनडीसी में हो सकता है।
पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक देश के सभी राज्यों ने जलवायु खतरों के निपटने के लिए स्टेट प्लान बना लिया है। इस बिन्दु को इनटेंडेड नेशनली डिटरमिंड कांट्रीब्यूशन ( आईएनडीसी) में शामिल किया जा सकता है।