पिछले दो साल में विभाग इस योजना के तहत एलईडी, लेपटॉप, बैटरी और यूपीएस की खरीदारी पर 20.23 करोड़ और क्लास रूम के डेकोरेशन पर करीब 3 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। हेड स्टार्ट योजना की तरह स्मार्ट क्लास योजना भी बोगस साबित हो रही है। इन क्लासों को दिसंबर 2014 में शुरू होना था, लेकिन विषय के जटिल अंशों को समझाने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र से मिलने वाली सीडी, इंटरनेट और केबिल कनेक्शन की सुविधा नहीं मिली है। इस कारण क्लासें शुरू नहीं हो पा रही हैं।
वहीं स्कूल प्रबंधन उपकरणों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। दीवार पर लटकी एलईडी को पॉलीथिन से ढंका गया है। क्योंकि रूम की छत से बारिश का पानी टपक रहा है, तो रूम में छात्रों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। इस कारण ज्यादातर स्कूलों के स्मार्ट क्लास रूम स्टोर रूम बनकर रह गए हैं। राजधानी के 14 मिडिल स्कूलों में यह सुविधा दी गई है। इनमें से कुछ में तो उपकरणों की पैकिंग अब तक नहीं खुली है।
सिर्फ लेपटॉप निकले हैं, वे भी स्कूल के प्रभारी चला रहे हैं। स्टोर रूम बने दीवार पर लटकी एलईडी की सुरक्षा के मद्देनजर कई स्कूलों में क्लास में विद्यार्थियों को प्रवेश रोक दिया है। इस कारण ज्यादातर समय रूम में ताला लगा रहता है। यही वजह है कि स्कूलों अन्य गैर जरूरी सामान इन क्लासों में पटक दिया है। ये सामान दिया सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास के लिए राज्य शिक्षा केंद्र ने 42 इंच का एलईडी, यूपीएस, चार बैटरी और लेपटॉप दिया है। इस पर 1.40 लाख रुपए खर्च किए गए।
इसके अलावा कक्ष की साज-सज्जा पर 20 से 50 हजार रुपए तक खर्च किए गए हैं। पुरानी सीडी भिजवाईं स्मार्ट क्लास अब तक शुरू नहीं होने की जानकारी राज्य शिक्षा केंद्र की आयुक्त को दी गई। उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कारण पूछा, तो अधिकारियों ने आनन-फानन में राजधानी की स्मार्ट क्लासों को पाठ्यक्रम की सीडी भिजवा दीं। मजे की बात तो यह है कि ये वही सीडी हैं, जो वर्ष 2004 में हेड स्टार्ट योजना के लिए बनवाई गई थीं।
समीक्षा कर रही हूं
मैं योजना की समीक्षा कर रही हूं। यदि स्कूलों में सीडी नहीं पहुंची है, तो जांच करवाएंगे और बंद स्मार्ट क्लासों को जल्द शुरू कराएंगे।
-दीप्ति गौड़ मुकर्जी, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र