इंदु नेताम ने बताया कि कार्यक्रम में पूरी दुनिया में रहने वाले आदिवासियों की समस्याओं पर चर्चा के साथ ही यह समझने की कोशिश की गई कि वर्तमान में आदिवासियों का जीवन कैसे गुजर रहा है। इस मसले पर मोटे तौर पर माना गया कि विश्वभर में आदिवासियों की स्थिति और जीवन शैली लगभग एक जैसी है। सभी देशों में आदिवासियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत माइनिंग संबंधी प्रोजेक्ट से है।
आदिवासियों के निवास स्थान वाली जगहों पर खनन के कारण जीवन संकट में पड़ रहा है, खनन के कारण पर्यावरण संबंधी समस्याएं आने से प्रभावितों में सबसे अधिक आदिवासी ही हैं। भारत के संबंध में यह बात उल्लेखनीय है कि यहां आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण कानून बने हैं। कई देश ऐसे भी हैं जहां आदिवासियों के लिए कानून ही नहीं है। भारत के संबंध में यह भी कहा गया कि अच्छे कानून होने के साथ ही उसके समुचित पालन की आवश्यकता है।
इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से मांगें भी रखी गईं और सुझाव भी दिए गए। कहा गया कि किसी भी कीमत पर रुपयों के लिए या विकास के नाम पर आदिवासी हितों से समझौता न किया जाए। वनों, पहाड़ों का अत्यधिक दोहन बंद हो। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय समझौतों के पालन की बात भी कही गई। इंदु नेताम ने बताया कि उन्होंने कहा कि खनन आदिवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन है। खनन के लिए आदिवासियों को विस्थापित न किया जाए क्योंकि आदिवासी अपने पंरपरागत परिवेश में ही जी सकते हैं। उन्हें विस्थापित किया जाना ठीक नहीं है। इसके साथ ही जीएम बीज (जेनिटिकली माडिफाइड सीड) को लेकर चिंता सामने आई और इस पर प्रतिबंध की मांग उठी है।
मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले की बैगा आदिवासी महिला उजियारो बाई ने कहा कि अपने ही देश में बनाए जा रहे टाइगर रिजर्व भी आदिवासियों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। आदिवासी क्षेत्रों में नीलगिरी के प्लांटेशन से जैव विविधता प्रभावित हो रही है। उजियारो का कहना है कि आदिवासी जंगल के बिना नहीं रह सकते। हम लोग ही जंगल की रक्षा करते हैं उसके साथ ही जीने के आदी हैं और हमें ही जंगल से हटाने की बात होती है।