पावर सेक्‍टर की हालत खराब, 24 घंटे बिजली देने में ये हैं अड़चनें

नई दिल्‍ली। पावर सेक्‍टर की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है, जबकि सरकार का वादा है कि वर्ष 2022 तक सभी को 24 घंटे बिजली दी जाएगी। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कमान संभाली है और बिजली कंपनियों और राज्‍य सरकारों से बातचीत शुरू की है। लेकिन अब तक की सरकार की कवायद को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि कई ऐसी अड़चनें हैं, जिसका समाधान करना आसान नहीं होगा और उनका समाधान किए बिना लोगों को अफोर्डेबल प्राइस पर 24 घंटे बिजली उपलब्‍ध नहीं कराई जा सकती।

बेलआउट पैकेज मिलेगा या नहीं

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बिजली वितरण करने वाली कंपनियों (डिस्‍कॉम) पर लगभग 4.4 लाख करोड़ रुपये का लोन है और इन कंपनियों की हालत ऐसी है कि लोन की किश्‍त देने के लिए लोन लेना पड़ रहा है। सात प्रदेशों की डिस्‍कॉम ऐसी हैं, जिनकी वित्‍तीय हालत इतनी खराब हो चुकी है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एडवाइजरी जारी कर बैंकों से कहा है कि इन कंपनियों को लोन न दिया जाए। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कर्ज में डूबी कंपनियों ने 2 साल से लांग टर्म पावर परचेज एग्रीमेंट करने बंद कर दिए हैं, जिस कारण बिजली का उत्‍पादन तो हो रहा है, लेकिन डिस्‍कॉम द्वारा बिजली न खरीदने के कारण लोगों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में सोमवार को हुई डिस्‍कॉम की बैठक में बेलआउट पैकेज पर विचार विमर्श तो हुआ, लेकिन अगले दिन यानी मंगलवार को पावर मिनिस्‍टर पीयूष गोयल ने कहा कि पैकेज देने पर अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। ऐसे में, राज्‍य सरकारों को डिस्‍कॉम की हालत सुधारने के लिए आगे आना होगा, हालांकि केंद्र सरकार राज्‍य सरकारों को पूरा सहयोग करेगी। गोयल ने दावा किया कि 3 साल में हालात सुधर जाएंगे।

पैकेज नहीं है समाधान

पंजाब स्‍टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर परमजीत सिंह बताते हैं कि डिस्‍कॉम को बेलआउट पैकेज देना कोई समाधान नहीं है। राज्‍यों में जो हालात हैं, एक बार यदि सभी डिस्‍कॉम का कर्ज उतार भी दिया जाए तो 3-4 साल बाद फिर से डिस्‍कॉम पर इतना या इससे ज्‍यादा कर्ज हो जाएगा। इसके लिए सरकार को ठोस इंतजाम करने होंगे।

रेगुलेटरी कमीशन ने अपना काम नहीं किया

सिंह कहते हैं कि वर्ष 2003 में इलेक्ट्रिसिटी एक्‍ट लागू किया गया था तो उसकी पहली प्राथमिकता थी कि राज्‍य बिजली बोर्डों की हालत खराब है, इसलिए डिस्‍ट्रीब्‍यूशन, जनरेशन और ट्रांसमिशन को अलग अलग कर दिया जाए और हर राज्‍य में एक स्‍वतंत्र इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन बनाया जाए, जो टैरिफ के निर्धारण के साथ-साथ रेगुलेशन का काम करे, लेकिन ये कमीशन स्‍वतंत्र नहीं रह पाए और राजनीतिक दलों के दबाव के चलते बिजली की कॉस्‍ट से भी कम टैरिफ एनाउंस किया, जिसके कारण हालात बिगड़ते गए। मान लो, एक यूनिट की जनरेशन कॉस्‍ट 5 रुपये है और डिस्‍कॉम उसे 4 रुपये में सप्‍लाई करे तो डिस्‍कॉम का डूबना तय है। परमजीत सिंह कहते हैं कि इस सारी समस्‍या की जड़राजनीति है। राजनीतिक दल अपने वोटों के चलते इस समस्‍या को लगातार बढ़ा रहे हैं।

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