इसमें ई-टेंडर मंगवाए गए थे। इस कार्य के लिए सरगुजा के जायसवाल कंस्ट्रक्शन कंपनी ने ई-टेंडर भरा। ई-बिडिंग के बाद जायसवाल कंपनी के टेंडर को पास किया गया। टेंडर मिलने के कुछ दिन बाद सीजीएमएससी से पूरी प्रक्रिया को निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ जायसवाल कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अधिवक्ता अपूर्व त्रिपाठी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। इसमें छत्तीसगढ़ शासन और सीजीएमएससी को पक्षकार बनाया गया। मंगलवार को चीफ जस्टिस नवीन सिन्हा व जस्टिस पी. सेम कोशी की युगलपीठ में मामले को प्रारंभिक सुनवाई के लिए रखा गया।
युगलपीठ ने शासन और सीजीएमसी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया। शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने जवाब पेश करने नोटिस प्राप्त किया, लेकिन सीजीएमएससी की ओर से कोई भी अधिवक्ता नोटिस लेने सामने नहीं आए। शासकीय अधिवक्ता ने सीएमसी की ओर से नोटिस लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सीजीएमएससी अलग संस्था है। इस कारण से उनके लिए नोटिस नहीं लिया जा सकता है।
संस्था को अपना अलग वकील रखना होगा। इस पर युगलपीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अपूर्व त्रिपाठी से पूछा कि मामला ई-टेंडर का है और बिडिंग भी ई-टेंडर से हुई है। ऐसे में क्यों ने सीजीएमसी को ई-नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाए। इसके लिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता श्री त्रिपाठी को एक सप्ताह के अंदर प्रकरण का डिजिटल वर्जन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। उन्हें ऐसी सीडी में प्रकरण पेश करने को कहा गया है, जिसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सके। इस पर अधिवक्ता ने भी सहमति दी है। यह हाईकोर्ट का पहला मामला होगा, जिसमें किसी पक्षकार को ई-नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएगा।
कोर्ट ने यह माना कि 50 बिस्तर का अस्पताल निर्माण जनहित का मुद्दा है। यदि सामान्य तरीके से नोटिस भेजा जाएगा, तो इसमें समय लग सकता है। संस्था जब ई-टेंडर मंगाने के साथ सभी कार्य इंटरनेट में कर रही है तो संस्था को ई-नोटिस क्यों जारी नहीं किया जा सकता। प्रकरण को सीडी में पेश किया जाएगा। हाईकोर्ट अपनी वेबसाइट के माध्यम से संस्था को नोटिस जारी करेगा। याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए नया टेंडर जारी करने पर रोक लगाई गई है। यह हाईकोर्ट का यह पहला मामला होगा, जिसमें किसी पक्षकार को ई-नोटिस जारी किया जाएगा।
अपूर्व त्रिपाठी, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता