बांग्लादेश की इकोनॉमी में औरतों की हिस्सेदारी 34 फीसदी है। विश्व बैंक की एक ताजा छपी रिपोर्ट ‘औरत, कारोबार और कानून’ के मुताबिक, बांग्लादेश सालाना छह फीसदी की अपनी मौजूदा जीडीपी की तरक्की में 1.8 फीसदी और जोड़ सकता है।
अपने तजुर्बे के आधार पर हम इस तथ्य की पुरजोर वकालत करते हैं, क्योंकि अस्सी के दशक ने हमने दिखाया है कि कैसे औरतों की अगुवाई में मुल्क में रेडीमेड कपड़ों की क्रांति आ गई थी। इसी तरह से खेती-किसानी में औरतों की हिस्सेदारी भी समान रूप से अहम रही। बहरहाल, यह रिपोर्ट उन कायदे-कानूनों को सराहती है, जो औरतों की आर्थिक संभावनाओं पर अच्छा असर डालते हैं।
इसके साथ ही, तमाम इदारों (सरकारी और सामाजिक) तक उनकी पहुंच बनाना, उनके हक में जमीन-जायदाद का इस्तेमाल होना, नौकरी दिलाना, काम के लिए भत्ते देना, उनको कर्ज देकर मजबूत करना, इंसाफ दिलाना और तमाम तरह की हिंसा से उनकी हिफाजत करना, ये सब भी शामिल हैं। बांग्लादेश प्रोफेसर यूनुस के माइक्रो क्रेडिट मॉडल का घर है, जो दुनिया भर में मकबूलियत पा चुका है और जिसने लाखों गरीब और देहाती औरतों को तंगहाली से निकालने का काम किया है। यही नहीं, उन औरतों को कर्ज देकर लघु व मध्यम दर्जे के उद्योग-धंधे चलाने का हौसला दिया।
लघु और मध्यम दर्जे के ये कल-कारखाने आज हमारी इकोनॉमी की बुनियाद हैं और इनमें से ज्यादातर औरतों द्वारा ही चलाए जाते हैं। ऐसे में, विश्व बैंक ने जो सिफारिशें की हैं, वे जायज मालूम होती हैं। ऐसे कायदे, जो औरतों की तरक्की में रुकावट हैं, बदले जाने चाहिए। हुकूमत इससे जुड़े मसलों पर गौर फरमाए, ताकि आर्थिक गतिविधियों में औरतों की ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी पक्की हो सके। विधवाओं को खानदानी जायदाद में बराबर की हिस्सेदारी नहीं मिलती।
कामकाजी हलकों में पेशेवर औरतों के साथ भेदभाव होता है। यही नहीं, कई नामी-गिरामी आर्थिक संस्थाओं से औरतों को कर्ज उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितनी आसानी से मर्दों को मिलता है। ऐसे और इसके अलावा, कई सारी दूसरी रुकावटों को फौरन दूर करने की जरूरत है।
डेली स्टार, बांग्लादेश