इलाहाबाद हाईकोर्ट में शनिवार को मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की डिविजन बेंच ने यह आदेश दिया. मुख्य न्यायधीश के अलावा न्यायाधीश दिलीप गुप्ता एवं न्यायधीश यशवंत वर्मा बेंच के जज थे. इन शिक्षकों की नियुक्ति का आदेश बीएसए ने साल 2014 में जारी किया था, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है. प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्र हैं, इनकी नियुक्ति बिना टीईटी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गयी थी. 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली. इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया.
इसके साथ ही 2012 में सत्ता में आयी सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया. पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया. जबकि दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बनाये गये. वहीं, तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन सहित कई युवाओं ने समायोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विचाराधीन याचिकाओं पर अंतिम निर्णय लेने को कहा. जिसके बाद इस खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.