बालिका इन्सेंटिव योजना 6 सालों से खा रही धूल

रायगढ़ (निप्र)। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा इन दिनों जोर-शोर से उठाया जा रहा है। इस अभियान तहत प्रदेश के सिर्फ रायगढ़ जिले को जोड़ा ही गया है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ तहत तमाम तरह की कवायद की जा रही है। बावजूद इसके आज भी ग्रामीण अंचलों के स्कूलों में बेटियों की संख्या बेहद कम है। बेटियों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने बालिका इन्सेंटिव योजना की भी शुरुआत की गई थी, लेकिन योजना के तहत जिले की एक बेटी को लाभ प्राप्त नहीं हुआ है।

जिले में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को लेकर इन दिनों तमाम तरह की शासन की योजनाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन किसी भी योजना का लाभ बेटियों को पूर्णतः मिलता प्रतीत नहीं हो रहा है। शिक्षा विभाग के आंकड़े के अनुसार जिले में 2014 में आठवीं से उत्तीर्ण कर 9वीं कक्षा में गई बेटियों की संख्या करीब 60 हजार से अधिक है। वहीं सरस्वती साइकिल योजना में लाभांवित होने वाली बेटियों की संख्या मात्र साढ़े 5 हजार हैं। दूसरी ओर बालिका इन्सेंटिव योजना शुरुआत हुई थी। जिसके तहत कक्षा 9वीं पहुंचने पर बेटियों के खाते में 3-3 हजार रुपए डाला जाएगा। लेकिन आज तक किसी भी बेटी के खाते में बालिका इन्सेंटिव के नाम की राशि नहीं पहुंची है।

सरस्वती सायकल योजना के तहत कक्षा नवमीं में अध्ययनरत बालिकाओं एससी, एसटी व बीपीएल बालिकाओं को सरस्वती सायकल योजना के तहत सायकल प्रदान की जाती है। शिक्षा विभाग के आंकड़े के अनुसार हर वर्ष औसतन रूप से 60 हजार छात्राएं कक्षा नवमी में प्रवेश लेती हैं। ऐसे में इनमें से जिले में करीब 6 हजार एससी, एसटी व बीपीएल की छात्राएं होती हैं। करीब 700 लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें सायकल नहीं मिल पाया। मामले में विभाग का कहना है कि इन बालिकाओं का खाता नहीं खुल पाया था और इनके खाता खुलवाया जा रहा है। जैसे ही उनका खाता खुल जाता है इनके खाते में सायकल का पैसा आ जाता है।

योजना नहीं ले सकी मूर्त रूप

मिली जानकारी के अनुसार शासकीय और अनुदान प्राप्त अशासकीय विद्यालयों में कक्षा 9वीं में अध्ययनरत एसटी, एससी व बीपीएल की छात्राओं के खाते में 3-3 हजार रुपए जमा कराए जाने की योजना था। यह राशि बालिका के कक्षा दसवीं उर्त्तीण कर लेने के पश्चात या 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के बाद मय ब्याज के निकाले जाने का प्रावधान था। इस योजना के तहत बेटी को कम से कम 10वीं तक शिक्षा को बल देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। योजना के शुरू हुए करीब 6 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज पर्यन्त तक बालिका इन्सेंटिव योजना के तहत किसी भी बालिका के खाते में राशि नहीं आई है।

बालिका शिक्षा दर ज्यादा

ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर संकुलों में और जिला स्तर पर भी बालिका शिक्षा दर ज्यादा हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां 1000 छात्रों में 1005 छात्राएं हैं। ऐसे में बालिका शिक्षा के लिए ज्यादा जागरूक होने की जरूरत तो नहीं, लेकिन उनको उत्साहित करने की जो योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही है उसे सही तरीके से क्रियान्वयन किए जाने की जरूरत है। जिले मेंप्राथमिक शिक्षा हो या उच्च विद्यालयिन कक्षा सबमें बालिकाओं क ी संख्या ज्यादा है।

प्राथमिक से लेकर उच्च तक में बालिका ज्यादा

कक्षा बालक बालिका

प्राथमिक शाला 50767 52523

माध्यमिक शाला 33361 35377

हाई स्कूल 18922 21813

हायर सेकेण्डरी 10230 11727

अलग स्कूल होना कारण

यहां छात्राओं की संख्या ज्यादा होने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बालक और बालिका विद्यालय अलग-अलग हैं। दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी लोग सह शिक्षा वाले स्कूल में अपनी लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहते। चूंकि यहां के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में सह शिक्षा वाले सरकारी स्कूल नहीं हैं, इसलिए यहां के अभिभावक अपनी लड़कियों को बेधड़क स्कूल भेजते हैं।

यहां के परिवेश में ज्यादातर परिवार मातृ सत्तात्मक होती है और आदिवासी बहुल इलाके होने के कारण यहां के लोग महिलाओं के साथ ज्यादा भेदभाव नहीं करते। इसलिए भी यहां बालिका शिक्षा का अनुपात ज्यादा है।

सुभाष त्रिपाठी

वरिष्ठ पत्रकार व चिंतक

हमने सरकार की सभी योजनाओं को अच्छी तरह से लागू करने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी हम कोशिश कर रहे हैं कि और बालिकाएं प्रोत्साहित होकर शिक्षित हों।

एमके श्रीवास्तव

जिला शिक्षा अधिकारी

कुछ बच्चियों का बैंक खाता नहीं खुल पाया था, इसलिए उन्हें सायकल नहीं मिल पाई, ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। जिनका खाता खुलते जा रहा है उनके एकाउंट में पैसे पहुंच जा रहे हैं।

अलरमेल मंगई डी

कलेक्टर

 

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