यहां एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान डुल्क ने कहा कि भारत में पांच वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर में खासी कमी आई है। भारत में यह दर प्रति एक हजार बच्चों के जन्म पर 49 तक आ गई है। 1990 में जब सहस्त्राब्दी विकास के लक्ष्य (एमडीजी) तय किए गए थे, तो यह दर 126 थी।
इस प्रकार इसमें करीब 61 फीसदी की कमी आई है। यदि इस अवधि में वैश्विक औसत को देखें तो भारत की प्रगति कहीं अच्छी है। बाल मृत्यु दर में कमी का वैश्विक औसत 49 फीसदी रहा है। मृत्यु दर के मामले में भारत वैश्विक औसत के भी काफी करीब है। वैश्विक औसत अभी प्रति हजार 46 मौतों का है।
बता दें कि तब रखे गए लक्ष्य के अनुसार 1990 की तुलना में 2015 तक बाल मृत्यु दर में दो तिहाई की कमी लाना है। दूसरी तरफ नवजात शिशु मृत्यु दर भारत में अभी प्रति एक हजार जन्मों पर 40 के करीब है जिसे 30 से नीचे लाना है।
डुल्क ने कहा कि भारत के लोगों में स्वास्थ्य के प्रति चेतना बढ़ी है। लोग उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं को अपना रहे हैं। वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं चाहते हैं। सरकार ने भी कदम उठाए हैं। पीएम के स्वच्छ भारत अभियान इस दिशा में एक अच्छी पहल है। इससे सेहत के प्रति लोगों की सोच बदल रही है। इसी प्रकार स्कूलों में लड़कों एवं लड़कियों के लिए अलग टायलेट बनाने का लक्ष्य भी भारत ने हासिल किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है, इसके नतीजे आने वाले समय में आएंगे।
डुल्क के अनुसार भारत को स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहिए। फोन सेवाएं इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इसी कड़ी में यूनिसेफ ने कुछ बीमारियों से बचाव के लिए वोडाफोन के साथ मिलकर हेल्थ फोन सेवा जारी की थी। वे कहती हैं, तकनीक आधारित इनोवेटिव सेवाएं भारत के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।