नई दिल्ली। सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट अगले कुछ महीनों में आने की उम्मीद है। लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इसका असर राज्यों के खजाने पर ज्यादा पड़ने की आशंका जताई जा रही है। दरअसल वेतन आयोग का गठन हर 10 साल पर बढ़ती हुई महंगाई और कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखकर किया जाता है। वेतन आयोग का गठन केंद्र सरकार करती है जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतनमान, सेवा निवृत्ति के लाभ और अन्य सेवा शर्तों संबंधी मुद्दों पर विचार करती है। इससे पहले पाचवां वेतन आयोग एक जनवरी 1996 को और 6ठा वेतन आयोग एक जनवरी 2006 को लागू किया गया। वहीं, 7वां वेतन आयोग की सिफारिश को एक जनवरी 2016 से लागू किया जाना है।
जस्टिस माथुर की अध्यक्षता में आयोग गठित
सातवें वेतन आयोग का गठन 2014 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता में की। वेतन आयोग को कैबिनेट ने 28 फरवरी 2014 को मंजूरी दी। आयोग में जस्टिस माथुर के अलावा तीन और सदस्यों की नियुक्त की गई हैं। जबकि आयोग अपनी रिपोर्ट गठन की तारीख से 18 महीनों के अंदर सौंपेगी। आयोग केंद्र सरकार के कर्मचारी, अखिल भारतीय सेवाओं के कर्मी, केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारी और भारतीय लेखा परीक्षण विभाग के अधिकारी तथा रेलवे के अधिकारी व कर्मचारी के वेतन भत्ता सुविधाओं एवं अन्य लाभों की समीक्षा करेगा। जिसके आधार पर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगा। केंद्र और राज्य सरकारें वेतन आयोग के इसी रिपोर्ट के आधार पर अपने कर्मचारियों का वेतन भत्ता और पेंशन को लागू करती है।
50 लाख कर्मचारियों व 30 लाख पेंशनरों को लाभ
सरकार के द्वारा गठित 7वें वेतन आयोग का लाभ 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 30 लाख पेंशनरों को मिलेगा। जबकि 1 करोंड़ से ज्यादा राज्य एवं स्थानीय सरकारी कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा क्योंकि राज्य सरकारें भी इसी के आधार पर अपने कर्मचारियों और पेंशनरों को वेतन और भत्ता लाभ देती है। हालांकि छठे वेतन आयोग का क्रियान्वयन अक्टूबर 2008 में हुआ जिसकी वजह से 30 महीनें का एरियर कर्मचारियों को मिला। जिसने आर्थिक मंदी के दौर से बाहर निकलने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी कारण विकास की गति तेज हुई और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी।
7वें वेतन आयोग का राज्यों पर पड़ेगा असर
सातवां वेतन आयोग अपनी सिफारिश रिपोर्ट अगले कुछ महीनों में देने वाला है। जिसका असर राज्यों पर भी पड़ने वाला है। यह जानकारी हाल ही में जारी एक रिपोर्ट से निकलकर सामने आई है। क्योंकि राज्यों की राजकोषीय स्थिति को यदि देखा जाए तो इसका असर उनके खजाने पर पड़ेगा जो कि उनकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित करेगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में पेंशन खर्च की हिस्सेदारी कितनी है जबकि इस पर होने वाले कुल खर्च में कितना राजस्व खर्च होगा। रिपोर्ट के अनुसार पेंशन खर्च का मूल्यांकन राज्यों ने स्वयं किया है जिसकी चर्चा 14वें वित्त आयोग से की है। जिसे नीचे आंकड़ों में चार्ट के जरिए फीसदी में दिखायागया है।