दलित परिवार की बेटी ने साहस को बनाया हथियार

र (मध्‍यप्रदेश)। लगातार कई बार प्रशासन को ट्यूब के सहारे खइड़िया नदी को ग्राम देदला के बच्चों और अन्य लोगों द्वारा पार करने के जोखिम के बारे में अवगत कराया गया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। परिणाम यह हुआ कि शुक्रवार को महेंद्र (15) को ट्यूब से नदी पार करना महंगा पड़ गया और वह काल के गाल में समा गया। ऐसे में पुल की मांग को लेकर कई दिन तक स्कूल नहीं जाने का आंदोलन कर चुकी 13 वर्षीय दलित परिवार की बेटी ज्योति अब अपने पिता को कहती है कि मैं लड़कों जैसा साहस दिखाकर नदी पार करूंगी।

ज्योति पिता को कहती है कि मैं लड़कों से पीछे नहीं हूं। घटना से डर लगता जरूर है किंतु साहस रखना होगा। लगातार खईड़िया नदी पर पुल नहीं होने की समस्या मीडिया में आती रही है। दरअसल ग्राम देदला की ज्योति पिता किशन एक ऐसी बच्ची है जो कि इस पुल के लिए स्कूल जाने की बजाय खेती में काम करके जिम्मेदार लोगों को यह संदेश दे चुकी है कि पुल कितना जरूरी है।

जब बात नहीं बनी तो उसने व्यवस्था से लड़ने की बजाय साहस को अपना हथियार बना लिया। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को 10वीं में अध्ययनरत महेंद्र नामक बालक की स्कूल जाने के दौरान ट्यूब से नदी पार करते वक्त पानी में डूबने से मौत हो गई थी। इसके बाद ऐसा लगा था मानो ज्योति व अन्य बच्चे इस तरह का जोखिम नहीं उठाएंगे। दलित परिवार की यह बच्ची 15 अगस्त को भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने के लिए जोखिम लेकर ही ट्यूब से नदी पार करते हुए स्कूल पहुंची।

इस संबंध में ज्योति ने बताया कि डर तो लगता है लेकिन पुल बनने तक साहस की जरूरत है। मुझे बारिश और बारिश के कुछ माह बाद तक स्कूल जाना ही होगा। उसके लिए लड़कों और पुरुषों की तरह मुझे जोखिम भी उठाना होगा। ज्योति ने अपने पिता को यह तक कह रखा है कि वह स्कूल जाने के मामले में एक घटना से इसलिए नहीं डर सकती क्योंकि वह लड़की है। यदि लड़कों को स्कूल जाने में डर नहीं लगता है तो मुझे भी डरने की कोई जरूरत नहीं।

क्या है समस्या

सरदारपुर तहसील के ग्राम देदला में मीडिल स्कूल संचालित है। 40 से अधिक दलित और आदिवासी परिवार ग्राम देदला के ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां पर बारिश के दौरान पानी भर जाता है और मीडिल स्कूल जाने वाले रास्ते से संपर्क खत्म हो जाता है। ऐसे में ट्यूब से नदी पार करना होती है। देदला के अलावा राताकोट, फुलकीपाड़ा, खुर्द के लोगों को भी दिक्कत होती है। प्रशासन को कई बार इस समस्या से अवगत कराया। लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई।

कुछ नहीं कर सकते

ज्योति को हमने पिछले साल भी होस्टल में रहकर पढ़ने के लिए कहा था। दो दिन पहले फिर हमने ज्योति को होस्टल में ही रहकर पढ़ने के लिए संपर्क किया। उसने व उसके परिवार के लोगों ने मना कर दिया है। ऐसे में हमकुछ नहीं कर सकते। आनंद पाठक, विकासखंड शिक्षाधिकारी सरदारपुर

 

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