सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त को पारित आदेश से आधार को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अनिवार्य बनाने से इनकार कर दिया है। केंद्र द्वारा 1954 के पुराने निर्णय पर जोर देने से निजता के अधिकार की व्यापक समीक्षा के लिए मामले को नौ न्यायाधीशों की संविधान खंडपीठ को भेजने का निर्णय भी आया। इसके पूर्व 24 मार्च 2014 के एक अन्य आदेश से सर्वोच्च न्यायालय ने आधार की निजी सूचनाओं को सार्वजनिक करने पर पहले ही रोक लगा दी थी। सरकारी अधिकारियों के सर्विस रिकाॅर्ड, बैंकिंग सेवाओं, वेतन भुगतान, स्काॅलरशिप, वाहन/सम्पत्ति/विवाह पंजीकरण में आधार जरूरी करने की योजना पर अब फिर रोक लग गई है।
नए आदेश से ‘आधार’ सिर्फ सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), एलपीजी एवं केरोसीन की सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ही जरूरी है। न्यायालय ने भारत सरकार को यह भी प्रचार करने का आदेश दिया है कि आधार कार्ड आवश्यक नहीं है। अटार्नी जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखकर दिया है कि ‘आधार’ की निजी सूचनाओं को आपराधिक मामलों की जांच के अलावा पूर्णतया गोपनीय रखा जाएगा।
‘आधार’ परियोजना संसदीय विफलता की अजीब दास्तां है। योजना आयोग, जो अब नीति आयोग है, द्वारा जनवरी 2009 के प्रशासनिक आदेश से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) का गठन किया गया था। तत्पश्चात इस संस्था को कानूनी जामा पहनाने के लिए संसद में बिल पेश किया गया, जिसे संसद की स्थायी समिति ने 2010 में अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद संसद को इस महत्वपूर्ण विषय पर कानून बनाने के लिए समय ही नहीं मिला।
फलस्वरूप यूआईडीएआई का न कोई कानूनी स्वरूप है और न ही कोई वैधानिक मान्यता। इन कानूनी मुद्दों पर विचार और निर्णय के बगैर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा आधार को लागू करने की जिद से वर्तमान संवैधानिक और वित्तीय संकट पैदा हो गया है। 2014 के आम चुनावों के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इसे गैर-कानूनी बंाग्लादेशी नागरिकों का गेट-वे बताते हुए बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था व सरकार बनने पर आधार प्रोजेक्ट को रद्द कर इसकी सीबीआई जांच करवाने की घोषणा की थी।
एनडीए द्वारा सरकार बनाने के बाद आधार प्रोजेक्ट को रद्द करने की बजाय, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ववर्ती स्थगन आदेशों की अवहेलना करके आधार की अनिवार्यता गंभीर विधिक संकट के अलावा कई सवाल भी खड़े करता है। यूआईडी प्राधिकरण की नीति के अनुसार निजी कंपनियों द्वारा देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों को बगैर किसी जांच के आधार कार्ड प्रदान कर दिया जाता है। अनुमानों के अनुसार भारत में पांच करोड़ विदेशी घुसपैठिए रह रहे हैं और आधार कार्ड मिलने पर उनको क्रमिक तरीके से पैन कार्ड, राशन-कार्ड फिर अंत में पासपोर्ट के माध्यम से भारतीय नागरिकता मिल सकती है, जो गंभीर राष्ट्रीय एवं संवैधानिक संकट का विषय है।
मार्च 2014 में कोबरा पोस्ट द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन से इस बात की पुष्टि होती है कि 500 रुपए खर्च कर गैर-कानूनी घुसपैठियों द्वारा विधायक सत्यापन एवं फर्जी आधार कार्ड लिया जा रहा है। लाखों फर्जी कार्डों के अलावा, 34,015 ऐसे गंभीर मामले प्रकाश में आए हैं, जहांदोहरे आधार कार्ड जारी किए गए हैं, जिससे यह आशंका पुष्ट होती है कि अपराधी अनेक आधार नंबर रख सकते हैं, जो इस परियोजना के लक्ष्य को विफल बना सकता है।
आईटी एक्ट की धारा 43-ए के अनुसार गोपनीय एवं निजी सूचनाओं के सुरक्षा एवं संरक्षण की जिम्मेदारी कंपनियों एवं निगमित क्षेत्र की होती है परंतु यूआईडीएआई का कोई कानूनी स्वरूप नहीं होेने से देश के करोड़ों लोगों के व्यक्तिगत एवं गोपनीय डाटा की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस कार्यक्रम का क्रियान्वयन प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से हो रहा है, जो लोगों की निजी सूचनाओं के साथ चेहरे के विवरण, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान एकत्रित कर रहे हैं। इन निजी कंपनियों द्वारा विश्व के सबसे बड़े डाटा-बेस के दुरुपयोग को रोकने के विरुद्ध भारत सरकार द्वारा कोई भी कठोर कानूनी प्रावधान नहीं बनाए गए। तकनीकी विशेषज्ञता पर जोर नहीं दिए जाने से बायोमीट्रिक्स सही तरीके से नहीं हो पा रहे हैं, जिन पर संशय होेने पर भविष्य में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इसके आपराधिक दुरुपयोग की स्थिति भी बन सकती है।
गौरतलब है कि 2011 में हुई भारतीय जनगणना में कुल 2200 करोड़ रुपए का खर्च आया था परंतु आधार प्रोजेक्ट पर 45 हजार करोड़ रुपए के खर्च का सरकारी अनुमान है, जबकि व्यावहारिक अनुमानों के अनुसार इस प्रोजेक्ट में कुल 1.50 लाख करोड़ रुपए का खर्च हो सकता है। इसी के अनुसार एईपीएस और राष्ट्रीय भुगतान निगम के माध्यम से सीधे भुगतान (डायरेक्ट बेनीफिट ट्रान्सफर) की महत्वाकांक्षी योजनाएं, आधार के माध्यम से प्रस्तावित की गई हैं। आधार के माध्यम से सरकार की कई योजनाओं यथा मनरेगा, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना एवं अटल पेंशन योजना का क्रियान्वयन भी अब खटाई में पड़ सकता है।
भविष्य में आधार कार्ड को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, बायोमीट्रिक पैन कार्ड, आव्रजन, पीएफ एवं कैदियों से जोड़ने की योजना यदि बनाई गई तो उस पर हजारों करोड़ का अतिरिक्त खर्च होगा, जिसके तकनीकी पक्ष के बारे में गंभीरता से विचार नहीं किया गया। ब्रिटेन ने 25 करोड़ पाउंड खर्च करने के बाद आधार जैसे ही नेशनल आईडी कार्यक्रम को अव्यावहारिक और निजता के अधिकार के खिलाफ होने के कारण आठ वर्ष के बाद रदद् कर दिया, जिससे देश को 80 करोड़ पाउंड की बचत भी हो गई।
राजनीतिक विवशताओं तथा तकनीकी नासमझी की वजह से भारत में आधार का रद्द होना संभव नहीं लगता। यदि ऐसा हुआ तो बड़ी आर्थिक क्षति के अलावा उन 80 करोड़ लोगों की निजी एवं गोपनीय सूचनाओं पर भी प्रश्नचिह्न लग जाएगा, जिन्होंने अपने आधार कार्ड बनवा लिए हैं। यूआईडी प्राधिकरण द्वारा आरटीआई में दी गई जानकारी के अनुसार इन सूचनाओं को न ही रद्द किया जा सकता है, और न ही डाटा-बेस से हटाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक खंडपीठ द्वारा निजता के अधिकार पर विमर्श और निर्णयन एक मील का पत्थर साबित होगा। परंतु संसद और सरकार को इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषय पर गंभीर पुनरावलोकन आवश्यक है, जहां ‘आधार’ के सतही क्रियान्वयन से पहले ठोस कानून एवं सुरक्षा काप्रावधानकिया जाए, जिससे भविष्य में देश की जनता को ‘निराधार’ होने से बचाया जा सके।
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