इसे लेकर ही विवाद हो गया। यह पुस्तक राज्यभर के प्राथमिक सरकारी स्कूलों में छठी से आठवीं के छात्रों के अध्ययन के लिए तैयार की गई थी।
"राष्ट्रीय महापुरुष भारत रत्न : डॉ. बी. आर. अंबेडकर" नामक इस पुस्तक के लेखक पी. ए. परमार के अनुसार 1956 में नागपुर में हिदुओं के बौद्ध धर्म स्वीकार करने के दौरान अंबेडकर ने 22 प्रतिज्ञाओं का जिक्र किया था। परमार के शब्दों में, "इन प्रतिज्ञाओं में धर्म परिवर्तन करने वालों से हिदू देवी-देवताओं और हिदू कर्मकांड में विश्र्वास न करने को कहा गया था।" परमार के अनुसार पुस्तक में शामिल प्रतिज्ञाओं की सूची उन्होंने नहीं दी बल्कि प्रकाशक ने खुद ही छाप दी।
वहीं अनुसूचित जाति कल्याण, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण विभाग के निदेशक के. डी. कपाड़िया के अनुसार, "हमने पुस्तक को स्कुलों से वापस लेने का निर्णय लिया है क्योंकि प्रकाशक ने इसे निर्धारित प्रारूप के अनुसार नहीं छापा है।"
परमार के अनुसार अब कोई विवाद शेष नहीं रहा क्योंकि सरकार ने पुस्तक की प्रतियां वापस मंगवा ली हैं। वह कहते हैं कि उनकी मंशा एक ऐसी पठनीय पुस्तक तैयार करने की थी जिसके जरिये छात्रों को बाबासाहेब के श्रेष्ठ विचारों की जानकारी मिलती।