सुनवाई के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब जस्टिस सहाय ने कहा कि जनहित याचिका के मुद्दे पर उन्होंने कोर्ट से सभी जजों से राय मांगी थी लेकिन किसी ने भी मुझसे बात नहीं की। उन्होंने कहा, ‘उन लोगों लगता है कि मुझमें हिम्मत नहीं है। जहां तक हिम्मत की बात है मुझे मायावती और मुलायम भी जानते हैं।’ हालांकि उन्होंने इस बात का ब्यौरा नहीं दिया। इससे पहले बंद कमरे में चल रही सुनवाई के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट में ‘घोटाले के कई मामले’ हैं।
जिन जजों को जमीन के अवैध आवंटन के मामले में नोटिस भेजा गया है उनके वकील की दलील सुनने के बाद जस्टिस सहाय ने कहा कि एक ऐसा कंप्यूटर घोटाला भी है जिसमें एक जज के सगे भतीजे को इसके सप्लाई का ठेका दिया गया था। 1,101 कंप्यूटर दिया गया और करोड़ों का फर्जीवाड़ा हुआ। जज के भतीजे ने 2.79 करोड़ रुपये के कीमत के खराब कंप्यूटर्स की सप्लाई की थी। इस मामले को जस्टिस भट्टाचार्य ने खारिज कर दिया था। (पूर्व चीफ जस्टिस भास्कर भट्टाचार्य)
उनकी यह टिप्पणी एड्वोकेट जनरल कमल त्रिवेदी के उस दलील के बाद आई जिसमें उन्होंने बड़े संवैधानिक पीठ का गठन करने का विरोध किया था। इसके समर्थन में उन्होंने यह भी दलील दी कि हाईकोर्ट में क्लास-3 और क्लास-4 के पदों पर सीधी भर्ती की गई थी।
इसके जवाब में जस्टिस सहाय ने कहा, ‘क्लास-3 और क्लास-4 के मुद्दे पर बहस मत कीजिए, चीफ जस्टीस के पास पूरी जानकारी होती है। मैं पंडोरा का बॉक्स ओपेन नहीं करना चाहता।’ जजों के वकील त्रिवेदी के भारी विरोध के बावजूद जस्टिस सहाय ने जनहित याचिका की सुनवाई के मामले को जस्टिस मोहिंदर पाल, जस्टिस जेबी पार्दिवाला और जस्टिस परेश उपाध्याय के पीठ को भेज दिया।
इसके अलावा जस्टिस सहाय ने उच्च पीठ के सामने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान 10 सवालों का एक फ्रेम भी रखा जिसके आधार पर आगे की सुनवाई हो। इस दौरान वकील ने जजों का पक्ष रखने के लिए कोर्ट से और ज्यादा समय की मांग करते हुए कहा कि अभी तक कई जजों के पास देर रात को नोटिस पहुंचा और कुछ के पास अभी नोटिस पहुंचा ही नहीं है।