अब ईपीएफओ हर वर्ष एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स के जरिये ताजा जमा राशि में से पांच फीसदी हिस्सा शेयर बाजार में लगाएगा। ताजा फैसले के अनुसार, ईपीएफओ इस वर्ष पांच हजार करोड़ रुपये शेयर बाजार में निवेश करेगा, जो इस वर्ष की शुरुआत में 8.5 लाख करोड़ की कुल जमा राशि की तुलना में नगण्य है। जो लोग मानते हैं कि बूंद-बूंद से समुद्र बनता है, वे भी कहते हैं कि यह राशि इतनी कम है कि इससे तालाब भी नहीं बन सकता। यही नहीं, यह निवेश शेयर बाजार के दो बेंचमार्क सूचकांकों- सेंसेक्स और निफ्टी में किया जाएगा, जिससे शेयर बाजार की गतिविधियों का संकेत मिलता है।
यों तो सेंसेक्स और निफ्टी में निवेश करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन निवेश की राशि का अनुपात इतना कम है कि शायद ही लोगों को कुछ खास फायदा होगा। हाईब्रीड म्यूचुअल फंड्स का, जिसमें पैसे का कुछ हिस्सा शेयर और कुछ ऋण में निवेश किया जाता है, अनुभव मिला-जुला रहा है। उदाहरण के लिए, यदि कोई कम से कम 65 फीसदी शेयर जमा को बनाए रखता है, तभी दीर्घ काल में वह अच्छा-खासा धन बना सकता है। इसके विपरीत अगर कोई शेयर में निवेश राशि 25 फीसदी से कम रखता है, तो वह बढ़ती महंगाई की तुलना में कुछ ही ज्यादा लाभ ले पाता है।
चूंकि ईपीएफओ एक दीर्घकालीन और सेवानिवृत्ति बचत है, इसलिए शेयर बाजार में पर्याप्त जमा राशि का निवेश होना चाहिए। यदि पैसा एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) में भी जाता है, तो लाभ की संभावना जबर्दस्त है। सक्रिय व्यवस्थित फंड की तुलना में एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स काफी सुस्त निवेश है। मगर ईटीएफ का प्रबंधन लागत व्यवस्थित फंड की तुलना में कम होता है, इसलिए यह पैसा ईटीएफ के जरिये शेयर बाजार में लगाया जा रहा है। पिछले इतिहास को देखें, तो अगर सेंसेक्स में सात वर्ष से ज्यादा के लिए निवेश किया जाता है, तो नुकसान की आशंका शून्य है। सेंसेक्स की शुरुआत जनवरी 1980 में हुई थी, तब से हर सात वर्ष का चक्र अगर देखें, तो आपको पता चल जाएगा कि दीर्घकालीन निवेश में फायदा ही होता है। सेंसेक्स में अगर दीर्घकालीन लाभ के आंकड़ों पर गौर करें, तो वह करीब 16 फीसदी के आसपास मिलता है। यह अकेला ऐसा कारण है, जिसे सरकार को शेयर में निवेश का आवंटन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
मौजूदा मानदंड के अनुसार,ईपीएफओ को ईटीएफ के शेयर में इंक्रीमेंटल इनवेस्टमेंट का पांच से 15 फीसदी निवेश करना चाहिए। और नियत आय में से कोई भी राशि निकाली नहीं जाएगी और उसे फिर से निवेश किया जाएगा। इस तरह से शेयर को कुल जमा राशि के पांच फीसदी या उससे ज्यादा तक पहुंचने में एक दशक से अधिक समय लग सकता है। यह वापसी की दर और शेयर एवं नियत आय लाभ के अंतर पर निर्भर करता है। इस वर्ष पांच हजार करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे, जो ईपीएफओ के जमा धन का ज्यादा से ज्यादा 0.5 फीसदी हिस्सा होगा। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि यह कितनी छोटी राशि है।
गौरतलब है कि ईपीएफओ के छह करोड़ से अधिक अंशधारक हैं और वह अब तक मुख्य रूप से केंद्र व राज्य सरकारों की प्रतिभूतियों में ही निवेश करता रहा है। इसलिए अगर आप इस बात से खुश हैं कि आपकी भविष्य निधि का पैसा शेयर बाजार में लग रहा है, तो जान लीजिए कि यह राशि बहुत कम है, जो सेवानिवृत्ति के बाद आपकी जमा राशि में अचानक बहुत ज्यादा उछाल नहीं ला देगी। हालांकि इस कदम से समग्र शेयर बाजार को लाभ होगा। कल्पना कीजिए कि ईपीएफओ के जरिये यदि उत्तरोत्तर बढ़ने वाला ज्यादा पैसा शेयर बाजार में आएगा, तो यह शेयर बाजार में नियमित रूप से आने वाला योगदान होगा, जो लंबे समय तक बाजार में बना रहेगा और शेयर बाजार में निवेश किए गए धन को स्थिरता प्रदान करेगा।
इसलिए अगले कुछ वर्षों में जब ईपीएफओ में कर्मचारियों का योगदान नियमित रूप से बाजार में आने लगेगा, तो यह व्यवस्थित निवेश की तरह काम करेगा, जिससे बाजार को विस्तार मिलेगा और वर्तमान में जो नियत लाभ दिया जा रहा है, उसकी तुलना में ज्यादा लाभ देगा। इससे अंततः ईपीएफओ के जरिये ज्यादा शेयर का पैसा लाने का उद्देश्य पूरा होगा, जिससे सेवानिवृत्त होने पर मुद्रास्फीति से समायोजित अधिक लाभ मिल सकेगा। ईपीएफओ और श्रम मंत्रालय के पास अवसर है कि वह अगले तीन से पांच वर्षों के दौरान होने वाले निवेश पर नजर रखें और देखें कि यह किस तरह व्यवहार करता है। जब तक ईपीएफओ शेयर बाजार में निवेश के लिए 15 से 20 फीसदी राशि आवंटित नहीं करता, तब तक उसका बहुत ज्यादा लाभ मुश्किल है। दुखद है कि मंत्रालय और ईपीएफओ के पैसे का प्रबंध देखने वाले लोगों ने शेयर बाजार में निवेश के लिए ज्यादा आवंटन नहीं किया, जबकि ऐसा करने पर पूरे बाजार को स्थिरता मिलती, जैसा कि कई विकसित बाजारों में पेंशन और स्वायत्त धन करता है। जब तक ऐसा नहीं होता, सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले पैसे को हम एक आकर्षक उत्पाद नहीं बना सकते, खास कर जब रिटर्न का मामला हो।
-लेखक आउटलुक मनी के संपादक हैं