हमारी संपदा, हमारा अधिकार– अनिल प्रकाश जोशी

इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग (ईएसडीएम), एयरोस्पेस ऐंड डिफेंस, पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी एवं अक्षय ऊर्जा जैसी उच्च तकनीकों के क्षेत्रों में भारत का बाजार वर्ष 2020 तक 550 से 600 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इससे अगले पांच वर्षों में देश के उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग में 140 अरब डॉलर का निवेश होगा और ऊंचे वेतन वाली तीन करोड़ नौकरियों का सृजन होगा। ये तकनीकें वैश्विक मूल उपकरण उत्पादकों (ओईएम) के बौद्धिक संपदा अधिकार का हिस्सा हैं, जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, उद्योगों और अनुसंधान व विकास संस्थानों में लगाया जाएगा और इनसे उद्योग को काफी लाभ होगा।

हाल के वर्षों में विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, खासकर दवा कंपनियों द्वारा भारतीय पेटेंट कानून की धारा 3 (डी) और अनिवार्य लाइसेंस के प्रावधानों पर काफी शोर मचाया जा रहा है। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रस्तावित मूल पेंटेंट कानून संधि और नकली व्यापार विरोधी संधि जैसी पहलों ने भारतीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) संबंधी नीति को चर्चा में ला दिया है। अमेरिका और यूरोपीय संघ सख्त आईपीआर कनूनों और जवाबदेह विनियमों की वकालत कर रहे हैं। भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को लगातार ऐसे संदेश भेजे जा रहे हैं कि वे अपनी बौद्धिक संपदा नीतियों में सुधार करें। वैश्विक ओईएम द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि भारतीय उद्योग जगत में बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा के लिए जागरूकता, क्षमता और प्रक्रियागत परिपक्वता का अभाव है।

उच्च तकनीक औद्योगिक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, ईएसडीएम, रक्षा आपूर्ति जैसे कार्यक्रमों और नीतियों की शुरुआत की है। आईपीआर की दृष्टि से इन कार्यक्रमों की सतर्क निगरानी इस बात का सुबूत है कि भारत ने अब वैश्विक व्यापार एवं वाणिज्य की अगली पीढ़ी के औजार के रूप में आईपीआर के बदलते परिदृश्य को पहचानना शुरू कर दिया है और आईपीआर संबंधी विश्व की श्रेष्ठ प्रणाली को स्वीकार करने के प्रति इच्छुक है। हाल ही में स्थापित आईपीआर थिंक टैंक ने आईपीआर नीति का पहला मसौदा पेश किया है।

लेकिन हमारे ज्यादातर राज्यों के पास बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी नीति ही नहीं है। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स बैंक द्वारा कराए गए एक शोध में पाया गया कि अनुसंधान व विकास संस्थानों, मनोरंजन, सूचना व संचार प्रौद्योगिकी एवं उच्च तकनीक मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में भी बौद्धिक संपदा संबंधी जागरूकता का अभाव है। जबकि विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में आईपी जागरूकता काफी ज्यादा है।

भारत को न केवल इस संबंध में एक ठोस नीति की आवश्यकता है, जो ठोस शोध पर आधारित हो, बल्कि एक अर्ध न्यायिक सशक्त निकाय की जरूरत है, जो विभिन्न मंत्रालयों के साथ तालमेल बना सके और संबंधित उद्योगों को एक साथ लाकर एकीकृत कानूनी माहौल बना सके। आईपीआर नीति के मसौदे में इन जरूरतों को प्रभावी ढंग से उकेरा गया है, लेकिन उसमें तालमेल और क्रियान्वयन सबंधी प्रक्रिया का अभाव है। साथ ही, इसमें राज्यों को भी शामिल करने के लिए प्रक्रिया विकसित करने की जरूरत है।

-लेखक वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स बैंक के सीईओ हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *