किसान आत्महत्या: 5 बदतर राज्यों की तस्वीर- पी साईनाथ

भारत के महराष्ट्र, तेलंगाना सहित आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या के सबसे ज़्यादा मामले रिपोर्ट होते हैं.
बीते एक दशक से देश भर में होने वाली किसानों की आत्महत्या में दो तिहाई हिस्सेदारी इन्हीं राज्यों की है.
नए तौर तरीकों से किसानों की आत्महत्या के मामले की गिनती के बावजूद 2014 में किसानों की कुल आत्महत्या में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले इन्हीं पांच बड़े राज्यों में सामने आए हैं.
बीते 20 साल में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 63,318 तक पहुंच गया है. बीते साल देश भर में किसानों की कुल आत्महत्या में 45 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले इस राज्य में दर्ज़ किए गए.
आत्महत्याएं घटी नहीं हैं
इन पांच राज्यों में "अन्य" वर्ग में आत्महत्या के मामले में भारी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है. 2014 के 12 महीनों में इस वर्ग में होने वाली मौत तो दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है.
2013 में पूरे भारत में "अन्य" वर्ग में होने वाली आत्महत्या के 24,809 मामले दर्ज हुए थे, जो 2014 में बढ़कर 41, 216 हो गए हैं. अन्य वर्ग में होने वाली आत्महत्या के मामले इतने ज़्यादा हैं जबकि इस वर्ग से 15,735 मौतों को हटाकर एक नई कैटेगरी दिहाड़ी मज़दूरों की बनाई गई है.
2014 में देश में आत्महत्या के सभी मामलों में एक तिहाई हिस्सेदारी (लगभग 31.3 फ़ीसदी) इसी अन्य वर्ग की है. पांच बड़े राज्यों में यह आंकड़ा 16,234 का रहा है, जबकि 2013 में इसकी संख्या 7,107 थी.
बदलते आंकड़ों का सच
इसके अलावा "अन्य" में एक स्वरोजगार वाला वर्ग भी बनाया गया है. इससे आंकड़े किस कदर प्रभावित होते हैं, इसे समझने के लिए किसानों की आत्महत्या और स्वरोज़गार के मामलों को जोड़कर देखकर देखना होगा.
छत्तीसगढ़ का ही उदाहरण देखिए, 2009 में यहां किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज हुए थे जबकि स्वरोजगार के अन्य वर्ग में यह संख्या 861 थी.
2013 में जैसे ही किसानों की आत्महत्या के मामले शून्य दर्ज किया गया, स्वरोजगार के मामलों में आत्महत्या की संख्या 2077 हो गई. छत्तीसगढ़ में 2013 में, सभी आत्महत्याओं में अन्य एवं स्वरोजगार की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी तक थी.

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