जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस प्रफुल्ल चंद्र पंत की पीठ ने यह नोटिस सीपीआईएल की याचिका के विशेष उल्लेख के दौरान जारी किए। इस याचिका पर हाईकोर्ट ने पहले ही कैवियट दायर की थी। याचिका में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह परीक्षा, 2014 में तीन साल बाद आयोजित हुई है, जबकि इसे प्रतिवर्ष होना चाहिए। इनमें 80 रिक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला गया था। परीक्षा में 9,033 उम्मीदवारों ने भाग लिया जबकि 659 पास हुए। इसके बाद मुख्य परीक्षा हुई, जिसका परिणाम 1 मई 2015 को आया। इसमें सिर्फ 15 उम्मीदवारों को ही पास किया गया।
आरोप है कि इनमें रैंक-1 और रैंक-3 पर दिल्ली हाईकोर्ट के सिटिंग जजों की बेटियां हैं। इस बारे में कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने भी एक पत्र लिखकर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जांच करवाने के लिए कहा था। उम्मीदवारों ने बताया कि रैंक-9 और रैंक-13 पर अन्य सिटिंग जज के लॉ रिसर्चर हैं जो न्यायिक सेवा भर्ती कमेटी के सदस्य हैं।
बहरहाल 98% उम्मीदवार जिन्होंने प्रारंभिक परीक्षा पास की, उन्हें मुख्य परीक्षा में फेल कर दिया गया। नियमानुसार रिक्तियों की संख्या के तीन गुना लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाना चाहिए। आरटीआई में इस सवाल के जवाब में बताया गया कि सिर्फ 15 उम्मीदवार ही 50% उत्तीर्ण अंक ला पाए थे।