किराये की कोख बढ़ता कारोबार घपले हजार

पिछले कुछ समय में सरोगेसी का कारोबार तेजी से फैला है। दुनिया भर से जोड़े भारत में कुकुरमुत्ते की तरह उगते आईवीएफ क्लिनिक्स में आते हैं, जहां किराये की कोख उपलब्ध होती हैं और वे उन्हीं के जरिये अपने बच्चों को जन्म देते हैं। पर इस कारोबार के लिए न तो कोई कानून है और न ही कोई निगरानी तंत्र, जिसकी वजह से इसमें शोषण भी बहुत होता है। पेश है नमिता कोहली की रिपोर्ट

 

करीब छह महीने पहले माइकल मॉरिस (बदला हुआ नाम) और उनकी पत्नी को दिल्ली में किराये की कोख के जरिये एक बच्ची हासिल हुई। वे अमेरिका के ओहियो में रहते हैं। माइकल फोन पर बताते हैं कि ‘दिल्ली में अव्वल दर्जे की मेडिकल सुविधा मिली। हम बच्ची को जन्म देने वाली मां से मिले। वह स्वस्थ थीं। सब कुछ अच्छा रहा।’ वह आगे बताते हैं कि ‘मैं जानता हूं कि कई लोगों के अनुभव मेरे जैसे नहीं हैं। इसके कई कारण हैं… मैं भारत पहुंचने से पहले कई और एशियाई देशों में गया। दूसरे लोगों की तरह मैं नाम के पीछे नहीं भागा और यहां यह चीज काम आई।’ माइकल का कहना है कि जिस जोड़े से हमने संपर्क किया, उन्होंने अच्छी सुविधाएं दीं। वे हवाई अड्डे पर हमें लेने आए और बढ़िया आईवीएफ क्लिनिक (जहां टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म होता है) ले गए।’ लेकिन वह इस बात पर भी जोर देते हैं कि ‘अंतरराष्ट्रीय बाजार में सरोगेसी के जरिये बच्चा पाना बहुत कुछ शेयर बाजार में सौदेबाजी करने 
जैसा है।’ 
हालांकि तमाम खर्चों के बावजूद कई लोगों को मनमाफिक ‘नतीजे’ नहीं मिलते। हाल ही में एक अमेरिकी जोड़े ने दिल्ली में किराये की कोख से दो जुड़वा बच्चों को हासिल किया। उन्होंने पाया कि उनमें से एक को यौन-संक्रमण है। 2011 में एक अमेरिकी जोड़े ने डीएनए टेस्ट से पाया कि वह जिस बेबी को घर लेकर आए थे, वह उनका था ही नहीं। पिछले साल एक ऑस्ट्रेलियाई जोड़ी ने यह फैसला किया कि वे सरोगेट मां से पैदा हुए दो जुड़वां बच्चों में से एक को ही ले जाएंगे।

 

 

गड़बड़ी की गुंजाइश 
भारत में किराये की कोख का कारोबार काफी तेजी से फल-फूल रहा है। आईवीएफ क्लिनिक पांच सितारा मेडिकल सुविधा देने का वादा करते हैं। उनकी तरफ से सफलता की गारंटी होती है। जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं, उनके सामने ढेर सारे विकल्प रखे जाते हैं। बावजूद इसके, डीएनए के न मिलने और बच्चे को छोड़ देने के कई मामले सामने आ रहे हैं। इसके अलावा आईवीएफ क्लिनिक में कई फर्जीवाड़े होते हैं। इससे यही दिखता है कि देश में किराये की कोख का कारोबार करीब-करीब अवैध और भ्रष्ट हाल में है।

 

 

गड़बड़ियां इसलिए हैं, क्योंकि आईवीएफ क्लिनिक बेलगाम गति से बढ़ रहे हैं। गैर-सरकारी संगठन समा रिसोर्स ग्रुप फॉर वुमन एंड हेल्थ, राष्ट्रीय महिला आयोग के 2012 के अध्ययन को सामने रखते हुए कहता है कि अभी भारत में ऐसे 3,000 प्रजनन क्लिनिक हैं। इन पर नियंत्रण की कमी का अंदाजा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ताजा नोटिस से लगताहै। यह नोटिस केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि अकेले दिल्ली के 300 क्लिनिक्स में सिर्फ 39 आईसीएमआर से पंजीकृत हैं। इस पेशे से जुड़े लोग मानते हैं कि देश के अंदर भी ऐसी सेवाओं की मांग बढ़ी है। साथ ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल और जापान जैसे देशों से भी लोग यहां आ रहे हैं, इसलिए यहां सरोगेसी का बाजार बहुत बड़ा हो गया है। इसमें पैसा बढ़ता जा रहा है और नियंत्रण-निगरानी का मामला पीछे छूटता जा रहा है। सरोगेसी लॉज इंडिया के प्रमुख और वकील अनुराग चावला बताते हैं, ‘कई आईवीएफ क्लिनिक अपने कायदे-कानून बनाते हैं और वहां मौजूदा दिशा-निर्देशों का मखौल उड़ाया जाता है।’
असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल, 2010 अब भी संसद से पास नहीं हुआ है और कुछ दिशा-निर्देशों से ही यह कारोबार चल रहा है, जिसमें कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। चावला कहते हैं कि निगरानी का कोई तंत्र नहीं है, इसलिए कई क्लिनिक्स को मनमानी करने और गलत कामों की छूट मिल जाती है। वह कहते हैं कि कई बार तो एक ही सरोगेट मां को कई जोड़ियों के सामने लाया जाता है। जैसे ही वह किसी एक जोड़ी के भ्रूण से गर्भधारण करती है, बाकी को कह दिया जाता है कि आपके लिए यह प्रक्रिया फिर से अपनाई जाएगी और उनसे दोबारा पैसे ले लिए जाते हैं। कई बार गर्भधारण में जान-बूझ कर गड़बड़ी बताई जाती है, ताकि ज्यादा पैसे वसूले जा सकें।

 

 

साल 2012 में गृह मंत्रालय ने भारत में सरोगेसी के लिए विदेशी समलैंगिक जोड़ियों या अकेली औरत या अकेले मर्द के आने पर प्रतिबंध लगाया। वर्ल्ड ऑफ सरोगेसी नाम की संस्था को मैरीलैंड में चला रही क्रिस्टल ट्रेविस कहती हैं कि इस प्रतिबंध से कारोबार ने ग्रीस, कंबोडिया, मेक्सिको और नेपाल का रुख किया। 
ट्रेविस कहती हैं कि भारतीय नीति-नियंताओं को दूसरे देशों के अधिकारियों के साथ किराये की कोख के मुद्दे पर समान नीति के लिए बैठक करनी चाहिए। इससे बच्चा चाहने वाले कई लोगों की दिक्कतें दूर होंगी और सरोगेसी से जन्मा बच्चा किसी कानूनी अड़चन में नहीं फंसेगा। वह बताती हैं, ‘जहां भारत में वास्तविक मां और बच्चे के माता-पिता, सभी के नाम जन्म प्रमाण-पत्र पर दर्ज होते हैं, वहीं कई देशों में सिर्फ जन्म देने वाले का ही नाम दर्ज होता है। ऐसे में, माता-पिता को अपने ही बच्चे को गोद लेना पड़ता है, जो उन्हें बुरा लगता है।’

 

 

नेपाल का रास्ता
ट्रेविस बताती हैं कि प्रतिबंध के बाद उन्हें अपना काम मेक्सिको ले जाना पड़ा, लेकिन कुछ भारतीय क्लिनिक थाईलैंड और नेपाल में ये काम कर रहे हैं। हालांकि इस साल से थाईलैंड ने अपने यहां कमर्शियल सरोगेसी को गैर-कानूनी घोषित कर दिया है।

 

ऐसे में नेपाल सरोगेसी के लिए मुफीद होता जा रहा है, क्योंकि भारतीय सरोगेट मां को वहां भेजा जा सकता है, जबकि नेपाली महिलाओं को सरोगेसी की इजाजत नहीं है। इसके अलावा नेपाल से बच्चे को बाहर ले जाना आसान है। चावला बताते हैं, ‘समलैंगिक जोड़ियां टूरिस्टवीजासे आती हैं, मेडिकल वीजा से नहीं। उनके नमूने लिए जाते हैं, डोनर को चुना जाता है और फिर उन्हें जाने दिया जाता है। भारत या फिर नेपाल में किराये की कोख में भ्रूण डाला जाता है। कुछ महीनों बाद सरोगेट मां को नेपाल भेज दिया जाता है और वहीं प्रसव कराया जाता है।’

 

सिलेब्रिटीज और सरोगेसी
27 मई 2013
बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान और उनकी पत्नी गौरी खान को अपना तीसरा बच्चा ‘अबराम’ 27 मई 2013 को सरोगेसी से मिला।

 

 

5 दिसंबर 2011
5 दिसंबर 2011 को आमिर खान और किरण राव के बेटे ‘आजाद राव खान’ का जन्म सरोगेसी की मदद से हुआ।

 

 

28 दिसंबर 2011
ऑस्कर विजेता अभिनेत्री निकोल किडमैन की ‘फेद’ नामक पुत्री का जन्म सरोगेसी से हुआ।

 

 

जून 2011
सोहेल खान और उनकी पत्नी सीमा सचदेव ने दूसरे बेटे योहान को सरोगेसी से पाया।

 

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