उस लेख में कई तरह के हस्तांतरणों को एक साथ मिला दिया गया है। मसलन, चावल, गेहूं, दालों और चीनी का उल्लेख एक साथ हुआ है। जबकि चीनी को अर्थशास्त्री ‘नॉन मेरिट’ वस्तु मानते हैं, क्योंकि इसका पोषण मूल्य न के बराबर तो है ही, यह नुकसानदेह भी होती है। दालों और अनाज पर सब्सिडी देना वाजिब है, क्योंकि ये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ हमारे भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार करते हैं। इतना ही नहीं, नकद हस्तांतरण योजना के क्रियान्वयन में जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, उन पर एक शब्द भी नहीं लिखा गया है।
मनरेगा में भ्रष्टाचार पर काबू पाने में बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका को कइयों ने सराहा है। मसलन, 2009 से 2014 के बीच मनरेगा जॉब कार्डधारकों के लिए खोले गए बैंक और पोस्ट ऑफिस खातों की संख्या की तुलना जन-धन योजना के खातों से की जा सकती है (10 करोड़ बनाम 12 करोड़)। मनरेगा की मजदूरी सीधे खातों में जमा होने से भ्रष्टाचार में जहां 2007-08 में आधे की कमी आई थी, वहीं 2009-10 में यह घटकर लगभग बीस प्रतिशत रह गई है। पिछले तीन वर्षों से सरकार इन बैंक खातों को आधार नंबर से जोड़ रही है। भुगतान और दूसरे दस्तावेजी कामों को निपटाने वाले फील्ड-स्टाफ पर इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इससे मनरेगा के क्रियान्वयन में भारी दिक्कतें आ रही हैं और भुगतानों में देरी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है गरीबों को, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।
ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। अपनी 200 रुपये की पेंशन के लिए, ठीक से चल भी न सकने वाले बुजुर्गों को नए बैंक खाते खुलवाने के लिए दौड़ाया जा रहा है। दलित-आदिवासी बच्चों को जो छात्रवृत्ति अब तक बैंक खातों में ठीक-ठाक मिल रही थी, उन्हें भी आधार नंबर आवंटित कराकर बैंक में पंजीकृत कराना होगा। रसोई गैस के नकद हस्तांतरण की व्यवस्था भी सुचारु ढंग से चलती नहीं दिख रही है। आए दिन हस्तांतरण में देरी और अनियमितताओं की शिकायतें सुनने में आ रही हैं। लोगों को यह भी नहीं मालूम कि ऐसी स्थिति में वे अपनी शिकायत कहां दर्ज कराएं। गैस एजेंसी वाले उन्हें बैंकों में भेजते हैं, और बैंक वाले, गैस एजेंसी का रास्ता दिखाते हैं।
ज्यादातर राज्यों में कई वर्षों से मनरेगा मजदूरी, पेंशन और छात्रवृत्ति के सीधेबैंक खातों में पहुंचने की व्यवस्था है। नकद हस्तांतरण के मामले में बैंकिंग प्रणाली सुरक्षित मानी जाती है। फिर इसे आधार नंबर से जोड़ने की जरूरत क्यों है? फर्जी लाभार्थी समस्या हैं, पर इनकी तादाद कितनी है? पिछले साल सरकार की रिपोर्ट में बताया गया कि जब रसोई गैस सब्सिडी को आधार से जोड़ा गया, तो मात्र दो फीसदी फर्जी कनेक्शन पाए गए। ऐसे फर्जी लाभार्थियों को खत्म करने के लिए आधार नंबर के अलावा अपेक्षाकृत कम नुकसान वाले तरीके भी हैं।
दुखद है कि दिल्ली के टैक्नोक्रेट्स के लिए कल्याण संबंधी कार्यक्रम खिलौने की मानिंद हो गए हैं, जो एक खिलौने की कमियों को दूर करने के बजाय उसे दूसरे से बदल देते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये खाद्य उपलब्ध कराने के बदले उनका सबसे नया खिलौना है, ‘नकद हस्तांतरण’।
दुनिया के तमाम देशों की सरकारें ‘वस्तुओं के हस्तांतरण’ की व्यवस्था अपनाती हैं। भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसके तहत सस्ते मूल्य पर अनाज और कुछ राज्यों में दालें और खाद्य तेल बेचे जाते हैं। लोगों को बाजार की अनिश्चितताओं से बचाना ही ऐसे हस्तांतरणों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है। दिक्कत यह है कि देश के बहुत से ग्रामीण इलाकों में बाजार उस तरह से काम नहीं करते, जैसा कि मिल्टन फ्रीडमैन मानते थे। लोगों को व्यापारियों के शोषण का शिकार होना पड़ता है, जो अपने मुनाफे के लिए कई हथकंडे अपनाने से नहीं चूकते। अगर बाजार ठीक से काम करें भी, तो राशन कार्डधारक आश्वस्त नहीं होते।
वे बुजुर्ग, विधवा और विकलांगों को मिलने वाली पेंशन का उदाहरण देते हैं, जो 2006 से 200 रुपये पर अटकी हुई है। लोगों का मानना है कि अगर इस रकम को महंगाई से नहीं जोड़ा गया, तो अनाज के पैसों को भी नहीं जोड़ा जाएगा। पीडीएस के जरिये अनाजों की आपूर्ति से दूसरे उपयोगी उद्देश्यों की भी पूर्ति होती है। कुछ क्षेत्रों में वर्ष भर अनाज उपलब्ध नहीं हो पाता। बैंकों और बाजार की तुलना में पीडीएस केंद्र लोगों के घरों के ज्यादा नजदीक होते हैं। इससे लोगों का समय और खर्च बचता है।
हां, कुछ नकद हस्तांतरण जरूर स्वागत योग्य हैं, जैसे-वृद्धों और विधवाओं को मिलने वाली पेंशन, मातृत्व लाभ, छात्रवृत्ति आदि। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 में गर्भावस्था के दौरान हर महिला को छह हजार रुपये मातृत्व लाभ देने का प्रावधान है। माता-शिशु के स्वास्थ्य और बच्चे के पालन-पोषण के दौरान महिला को हुए आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए यह जरूरी है। कितना हास्यास्पद है कि जो केंद्र सरकार नकद हस्तांतरण के लिए इतनी उत्साहित है, उसने इस दिशा में अब तक कुछ नहीं किया। सरकार अपने ही कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है, ऐसे में हैरानी नहीं कि लोग सरकारी (नकद हस्तांतरण) वायदों पर विश्वास नहीं करना चाहते, और जो उन्हें मिल रहा है (पीडीएस) उसे कायम रखना चाहते हैं।
-लेखिका आईआईटी, दिल्ली से संबद्ध हैं