संदीप तिवारी, रायपुर। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के पांच साल बाद भी छत्तीसगढ़ के प्राइमरी, मिडिल, हाई एवं हायर सेकंडरी स्कूलों में विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पढ़ाई करनी पड़ रही है। आलम ये है कि छत्तीसगढ़ की कुल 56 हजार 394 स्कूलों में से 1 हजार 673 स्कूलों के विद्यार्थियों को अभी भी पीने का पानी नसीब नहीं है।
1 लाख 10 हजार 713 छात्रों को स्कूल में पीने का पानी नहीं मिल रहा है। इनमें रायपुर के 9 स्कूल शामिल हैं। वहीं प्रदेश के 4 हजार 347 स्कूलों में 2 लाख 88 हजार 301 बालिकाओं के लिए अभी शौचालय नहीं बन पाया है। शौचालय के अभाव में स्कूल जाने वाली बालिकाएं लगातार शर्मसार हो रही हैं। इनमें रायपुर के 73 स्कूल शामिल हैं।
ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एड्यूकेशन (डाइस) की रिपोर्ट 2014-15 में। आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार की ओर से स्कूलों के युक्तियुक्तकरण एवं आदिम जाति एवं जनजाति स्कूलों के संविलियन के बाद भी स्कूलों की हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है। जानकार स्कूलों के हाल पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। बालिकाओं की तरह ही 12 हजार 893 स्कूलों में तो बालकों के लिए भी शौचालय नहीं है।
एक हजार से ज्यादा स्कूलों में भवन नहीं
डाइस के मुताबिक राज्य के 1 हजार 84 स्कूलों में अभी भी 60 हजार 986 विद्यार्थियों को भवन के अभाव में पढ़ाई करनी पड़ रही है। इसमें रायपुर के 20 स्कूल शामिल हैं। वहीं 1 हजार 342 स्कूलों में 53 हजार 876 छात्रों को केवल एक ही बिल्डिंग पढ़ने के लिए उपलब्ध है। इनमें रायपुर के तीन स्कूल शामिल हैं।
एक शिक्षक के भरोसे चार हजार स्कूल
राज्य में प्राइमरी, मिडिल , हाई एवं हायर सेकंडरी मिलाकर 3 हजार 891 स्कूलों में अभी भी एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों में एक लाख 27 हजार 768 विद्यार्थी प्रभावित हो रहे हैं। चौंकाने वाला तथ्य ये है कि रायपुर के 32 स्कूलों का संचालन भी एक ही शिक्षक के भरोसे है।
सरप्लस स्टेट में 18 हजार से ज्यादा स्कूल अंधेरे में
राज्य में 18 हजार 675 स्कूलों में आज तक बिजली का कनेक्शन नहीं है। गर्मी या उमस में पढ़ाई करने को बच्चे मजबूर हैं। इनमें 73 स्कूल रायपुर के हैं।
शिक्षक न ही कक्षा, कैसे हो पढ़ाई?
राज्य के 540 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। यहां की पढ़ाई रामभरोसे प्रभारी शिक्षक चला रहे हैं। 1747 स्कूलों में तो अलग-अलग कक्षाओं के लिए पृथक कक्ष ही नहीं है। वहीं 32 हजार 34 स्कूलों में नियमित प्राचार्य और प्रधानपाठक नहीं होने से स्कूल में बेहतर पढ़ाई के लिए अनुशासन भी नहीं बन पा रहा है।
मध्यान्ह भोजन भी नहीं
1 हजार 938 स्कूलों के बच्चों को अभी तक मध्यान्ह भोजन भी नसीब नहीं है। वहीं 2048 स्कूलों में चाइल्ड केयर एड्यूकेशन की सुविधा नहीं है।
बोलते आंकड़े
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-1084 स्कूलों में 60986 छात्रों को पढ़ाई के लिए बिल्डिंग नहीं
-1 हजार 342 स्कूलों में 53 हजार 876 छात्रों को केवल एक ही बिल्डिंग पढ़ने के लिए
– 3891 स्कूलों में 1 लाख 27 हजार 768 बच्चों को सिंगल क्लास रूम पढ़ने के लिए
– 1 हजार 673 स्कूलों के विद्यार्थियों को अभी भी पीने का पानी नसीब नहीं
-4 हजार 347 स्कूलों में 2 लाख 88 हजार 301 बालिकाओं के लिए अभी शौचालय नहीं
– 18 हजार 675 स्कूलों में आज तक नहीं पहुंची बिजली
-12 हजार 893 स्कूलों में तो बालकों के लिए भी शौचालय नहीं
इनका कहना है
पिछले सालों से हम लगातार बालिकाओं के पेयजल और शौचालय के लिए काम कर रहे हैं। पिछले सालों की अपेक्षा अब हालत बहुत सुधर चुकी है। डाइस के नए आंकड़ों को अभी तक मैंने नहीं देखा इसलिए अभी कुछ नहीं कह सकता हूं।
– सुब्रत साहू, सचिव, स्कूल शिक्षा
एक्सपर्ट व्यू
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है कि स्कूलों में बालक एवं बालिकाओं के लिए टॉइलट बनाना था। बालिकाएं शर्मसार होने की बात तो बाद में आती है, वे स्कूल ही छोड़ देती हैं। इसका प्रभाव छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ता है। बालिकाओं के ड्रापआउट की दर भी बढ़ जाती है। इस हालत के लिए सीधे प्रशासन जिम्मेदार है।
– गौतम बंधोपाध्याय, संयोजक, छत्तीसगढ़ शिक्षा का अधिकार फोरम
जब तक बच्चियां छोटी हैं, तब तक कोई समस्या नहीं होती है। जैसे ही बालिकाएं बड़ी हो जाती हैं तो स्कूल में छेड़खानी की समस्या के साथ स्वयं शर्म महसूस करने लगती हैं। बालिकाओं के 30 फीसदी ड्रापआउट होने का कारण शौचालय न होना है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
– डॉ.बीजी सिंह, मनोवैज्ञानिक